देशपर महामारी कोरोना का प्रभाव
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केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, भारत में अब तक पाँच लाख 48 हज़ार से अधिक मामले दर्ज किए जा चुके हैं जिनमें 2 लाख 10 हज़ार से अधिक मरीज़ अब भी संक्रमित हैं यानी उनमें बीमारी के लक्षण हैं या उनकी रिपोर्ट अब तक निगेटिव नहीं आई है.
भारत सरकार के अनुसार इस महामारी की चपेट में आ चुके लोगों के ठीक होने की संख्या, मौजूदा समय में संक्रमित मरीज़ों से ज़्यादा है. सरकार के अनुसार, तीन लाख 21 हज़ार से ज़्यादा मरीज़ पूरी तरह ठीक हो चुके हैं.
लेकिन भारत में भी टेस्टिंग कम की जा रही है, ख़ासतौर पर उन राज्यों में जहाँ आबादी का घनत्व बहुत अधिक है. ऐसे में संक्रमितों की असल संख्या सरकारी डेटा से अनिवार्य रूप से अधिक होगी.
पर ऐसा हो क्यों रहा है? विकासशील देशों में भीड़भाड़ वाले इलाक़ों में रहने को मजबूर, वंचित समुदायों के लिए इस महामारी को सर्वाधिक ख़तरनाक समझा गया है. कोविड-19 के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेष प्रतिनिधि डेविड नोबार्रो के अनुसार, कोरोना वायरस संक्रमण ‘ग़रीबों की बीमारी’ बन गया है.
जब एक पूरा परिवार एक कमरे के मकान में रहता है तो सोशल डिस्टेंसिंग जैसी हिदायतों का पालन करना असंभव होता है. जिन इलाक़ों में पानी की व्यवस्थित सप्लाई नहीं होती, वहाँ बार-बार हाथ धोना भी संभव नहीं होता. और जब लोगों को खाने के लिए रोज़ दिहाड़ी करने जाना होता है, तो सड़क किनारे, बाज़ारों और गलियों में खड़े होकर बात ना करना भी संभव नहीं रह जाता.
पर ऐसे इलाक़ों में संक्रमण की दर बहुत अधिक होती है. मेक्सिको के ऐसे ही इलाक़ों में टेस्टिंग के दौरान पता चला कि वहाँ रहने वाला हर दूसरा शख़्स कोरोना संक्रमित है. ये कोरोना संक्रमण का हॉटस्पॉट रहे न्यूयॉर्क और उत्तरी इटली जैसे अन्य शहरों की तुलना में काफ़ी ज़्यादा है.
जिन देशों का बजट छोटा है, उन देशों में हेल्थ केयर वर्करों और मेडिकल स्टाफ़ के लिए पीपीई किट जैसी ज़रूरी सुरक्षा सुविधाओं की भी किल्लत है.
इक्वाडोर में, एक वक़्त बाद स्थिति ये आ गई कि शवों को गलियों के कूड़ेदान में ही छोड़ना पड़ा क्योंकि प्रशासन इतने शवों को मैनेज नहीं कर सकता था. साथ ही वहाँ की सबसे बड़ी प्रयोगशाला में वो कैमिकल ख़त्म हो गया जिसकी कोविड-19 टेस्ट में ज़रूरत होती है.
और जहाँ आर्थिक स्थिति पहले से ही विकट हो, वहाँ संक्रमण की रोकथाम के लिए सख़्त लॉकडाउन लगाना विकसित देशों की तुलना में बहुत ज़्यादा चुनौतीपूर्ण है.
डॉक्टर डेविड नोबार्रो कहते हैं, “संक्रमण को फैलने से रोकने का एक तरीक़ा ये है कि जहाँ संक्रमण ज़्यादा है, उन देशों को अंतरराष्ट्रीय सहायता दी जाये. हम कोई निराशाजनक संदेश नहीं देना चाहते, पर हम चिंतित हैं कि जिन्हें मेडिकल सप्लाई और वित्तीय सहायता की ज़रूरत है, वो उन तक पहुँचे.”