दैतनक जागरण, 15 करोलबाग, दिल्ली के प्रिान संपादक को पत्र लिखिए, जिसमें निरंतर
महंगी होती शिक्षा पर धचंता प्रकट की गई हो|
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भारत में शिक्षा निरंतर मंहगी होती चली जा रही है। अब शिक्षा दो प्रकार की हो गई है- गरीबों की शिक्षा और अमीरों की शिक्षा। गरीब सरकारी रहमोकरम पर छोड़ दिए गए हैं जबकि अमीर अपने धन के बल पर महंगी शिक्षा पाने में सफल हो जाते हैं। अब शिक्षा एक व्यवसाय का रूप ले चुकी है। इसमें केवल धन कमाने का खेल है। देश में आई समृद्वि भी इस खेले में शामिल हो गई है। अभिभावक भी अपने बच्चों को मंहगी शिक्षा दिलाकर आत्मतुष्टि का अनुभव करते हैं। शिक्षा जगत में फीस भी निरंतर बढ़ती जा रही है। अभी पिछले दिनों भारतीय प्रबंधन संस्थान की फीस लगभग दुगुनी कर दी गई। एक वर्ष की फीस लगभग 7-8 लाख रूप्ये। बताइए गरीब कैसे इस शिक्षा का सपना देख सकता है। नर्सरी शिक्षा में भी यह मंहगी शिक्षा घुसपैठ कर चुकी है। आज अच्छे स्कूल नर्सरी के बच्चे से 5-6 हजार रूप्ये महीने वसूल कर रहे हैं। इतना तो वे पूरी कक्षा की अध्यापिका को मास का वेतन तक नहीं देतें। सरकार इस मंहगी शिक्षा के खेल को रोकने में पूरी तरह से बेबस नजर आ रही हैं। सरकार के दावे तो बहुत होते हैं, कोर्ट के आदेश भी आते हैं, पर इस महंगी शिक्षा के संचालक सबको ठेंगा दिखाकर अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं।
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