दादी मां कहानी के लेखक कौन है
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दादी मां कहानी के लेखक शिवप्रसाद सिंह है
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दादी माँ पाठ की विधा - कहानी है और लेखक शिवप्रसाद सिंह हैं।
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दादी माँ पाठ की विधा - कहानी है और लेखक शिवप्रसाद सिंह हैं।
इसमें लेखक ने अपने बचपन की यादों एवं अपनी दादी माँ के स्नेहिल एवं आकर्षक व्यक्तित्व का बड़ा सुंदर वर्णन किया है। लेखक अपने मित्रों की दो तरह की बातों से दुखी होते हैं और उन्हें अपनी दादी माँ की याद आ जाती है। यहीं से कहानी की शुरुआत होती है। गाँव में चारों तरफ एक विशेष गंधवाला पानी भरा है उसमें नहाना लेखक को बहुत अच्छा लगता है। ये खूब नहाते हैं और उन्हें बुखार आ जाता है। दो-दो रजाइयाँ ओढ़ने के बाद रात की यारह बजे के बाद बुखार उतरा। दिन में दादी बार-बार उसे छू-छूकर बुखार का पता लगाती हैं। चारपाई के पास बैठती हैं, फिर अनेक प्रकार की जानकारी लेती हैं।
दादी माँ को गाँव की पचासों दवाइयाँ मालूम हैं। अतः जब भी कोई गाँव में बीमार होता है तो दादी वहाँ
पहुँच जाती है और यही बातें करती हैं। वे सफाई का बहुत ध्यान रखती हैं। लेखक के किशन भैया को शादीp
में वे बहुत उत्साहित रहीं घर में सरि काम ठीक से हो रहे हैं या नहीं इसका बहुत ध्यान रखती रहीं। धन्नो दूद्वारा उधार का पैसा समय पर न चुकाने पर उसे बहुत डाँटती हैं, किंतु अंत में धन्नो को दिया सारा कर्ज माफ कर देती हैं तथा उसे दस रुपये और देकर कहती हैं कि "धन्नो जैसे तेरी बेटी वैसी मेरी बेटी दस-पाँच रुपये के लिए जग हँसाई न हो।" लेखक के चाचा के द्वारा पैसे की माँग करने पर उन्होंने अपने पति के हाथों की निशानी कंगन को भी
दे दिया। ये कड़ाके की सर्दी में भी भीगी साड़ी पहने दीपक जलाकर ईश्वर का ध्यान करती थीं।
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