दादा ना भैया सबसे बडा रुपया pls give a short essay on this
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Dada Bada Naa Bhaiya Sabse Bada Rupaiya के अलावे यह भी पढ़ें: बचत एक आदत है
संसार में बहुत प्रकार के मनुष्य वास करते हैं. सबका अपना-अपना सोचने-विचारने का ढंग होता है. यदि संसार में यह कहने वालों की कमी नहीं कि- “ऊंह धन! हाथ के मैल-से अधिक महत्व ही क्या है धन का ?” तो दूसरी ओर ऐसे लोग भी कम नहीं कि जो इससे सर्वथा विपरीत मत प्रकट करते हुए बड़े ही मुखर ढंग से उद्घोष किया करते हैं कि – ‘दादा बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रूपैया” अर्थात माता-पिता, भाई-बहन आदि संसार के जितने भी सरोकार, जितने भी रिश्ते-नाते और जो कुछ भी है; वह सब ‘रूपैया’ अर्थात धन ही है.
इस मान्यता और कथन की व्याख्या कई प्रकार से की जा सकी है. एक तो यह कि पास धन रहने पर ही माता-पिता, भाई-बहन, पत्नी-पुत्र आदि रिश्ते-नाते अपने बना करते, मानते और मान दिया करते हैं. जब आदमी की जेब ठनठन गोपाल हो जाती है, तो ये सारे सरोकार एवं रिश्ते-नाते सम्बन्ध भूल कर दूर हट जाया करते हैं.
कुछ लोग इस उक्ति की व्याख्या तनिक दूसरे ढंग से किया करते हैं. उनका कहना है कि बस, धन या नकद नारायण की बात करो और कुछ नहीं. यह बताओ कि धन कितना आएगा या यह व्यवहार- सम्बन्ध कितना लाभदायक होगा. अरे, प्रेम, भाईचारा, लोक-लाज और सम्बन्धों को गोली मारो. पास में धन रहेगा तो एक नहीं अनेक माता-पिता, भाई-बहन, पत्नी-पुत्र तथा अन्य सभी तरह के सम्बन्धी खरीद लिए जाएँगे. सभी स्वयं पास भागे आएँगे. हमें पता है कि पैसे के बल पर सभी कुछ खरीदा और पाया जा सकता है.
संसार में बहुत प्रकार के मनुष्य वास करते हैं. सबका अपना-अपना सोचने-विचारने का ढंग होता है. यदि संसार में यह कहने वालों की कमी नहीं कि- “ऊंह धन! हाथ के मैल-से अधिक महत्व ही क्या है धन का ?” तो दूसरी ओर ऐसे लोग भी कम नहीं कि जो इससे सर्वथा विपरीत मत प्रकट करते हुए बड़े ही मुखर ढंग से उद्घोष किया करते हैं कि – ‘दादा बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रूपैया” अर्थात माता-पिता, भाई-बहन आदि संसार के जितने भी सरोकार, जितने भी रिश्ते-नाते और जो कुछ भी है; वह सब ‘रूपैया’ अर्थात धन ही है.
इस मान्यता और कथन की व्याख्या कई प्रकार से की जा सकी है. एक तो यह कि पास धन रहने पर ही माता-पिता, भाई-बहन, पत्नी-पुत्र आदि रिश्ते-नाते अपने बना करते, मानते और मान दिया करते हैं. जब आदमी की जेब ठनठन गोपाल हो जाती है, तो ये सारे सरोकार एवं रिश्ते-नाते सम्बन्ध भूल कर दूर हट जाया करते हैं.
कुछ लोग इस उक्ति की व्याख्या तनिक दूसरे ढंग से किया करते हैं. उनका कहना है कि बस, धन या नकद नारायण की बात करो और कुछ नहीं. यह बताओ कि धन कितना आएगा या यह व्यवहार- सम्बन्ध कितना लाभदायक होगा. अरे, प्रेम, भाईचारा, लोक-लाज और सम्बन्धों को गोली मारो. पास में धन रहेगा तो एक नहीं अनेक माता-पिता, भाई-बहन, पत्नी-पुत्र तथा अन्य सभी तरह के सम्बन्धी खरीद लिए जाएँगे. सभी स्वयं पास भागे आएँगे. हमें पता है कि पैसे के बल पर सभी कुछ खरीदा और पाया जा सकता है.
himanshusingh52:
Where are you from ???
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