दादुर टर-टर करते झिल्ली बजती झन-झन,
'म्यव-म्यव' रे मोर, 'पीउ' 'पीउ' चातक के गण।
उड़ते सोन बलाक, आर्द-सुख से कर क्रंदन,
घुमड़-घुमड़ गिर मेघ गगन में भरते गर्जन।।
रिमझिम-रिमझिम क्या कुछ कहते बूंदों के स्वर,
रोम सिहर उठते छूते वे भीतर अंतर
धाराओं पर धाराएँ झरती धरती पर,
रज के कण-कण में तृण-तृण को पुलकावलि भर।।
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I am not able to understand this question
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it's the poem for 10 class lesson 1 (2 language)
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