Hindi, asked by nsalian327, 2 months ago

दादुर धुनि चहुँ दिसा सुहाई । बेद पढ़हिं जनु बटु समुदाई ।।
नव पल्लव भए बिटप अनेका । साधक मन जस मिले बिबेका ।।
अर्क-जवास पात बिनु भयउ । जस सुराज खल उद्यम गयऊ ।।
खोजत कतहुँ मिलइ नहिं धूरी । करइ क्रोध जिमि धरमहिं दूरी ।।
ससि संपन्न सोह महि कैसी । उपकारी कै संपति जैसी ।।
निसि तम घन खद्योत बिराजा । जनु दंभिन्ह कर मिला समाजा ।।
कृषी निरावहिं चतुर किसाना । जिमि बुध तजहिं मोह-मद-माना ।।
देखिअत चक्रबाक खग नाहीं । कलिहिं पाइ जिमि धर्म पराहीं।।
विविध जंतु संकुल महि भ्राजा । प्रजा बाढ़ जिमि पाई सुराजा ।।
जहँ-तहँ रहे पथिक थकि नाना । जिमि इंद्रिय गन उपजे ग्याना ।।


prayakut shabd ( प्रयुक्त )

बटु
विटप
खदयोत
अ र्क ​

Answers

Answered by Suzanne002
1

batu matlab bacche

bitap matlab mendhak

khadyot matlab jugnoo ( fireflies)

aur

ark ek pedh la naam hai

Answered by bhatiamona
0

दादुर धुनि चहुँ दिसा सुहाई । बेद पढ़हिं जनु बटु समुदाई ।।

नव पल्लव भए बिटप अनेका । साधक मन जस मिले बिबेका ।।

अर्क-जवास पात बिनु भयउ । जस सुराज खल उद्यम गयऊ ।।

खोजत कतहुँ मिलइ नहिं धूरी । करइ क्रोध जिमि धरमहिं दूरी ।।

ससि संपन्न सोह महि कैसी । उपकारी कै संपति जैसी ।।

निसि तम घन खद्योत बिराजा । जनु दंभिन्ह कर मिला समाजा ।।

कृषी निरावहिं चतुर किसाना । जिमि बुध तजहिं मोह-मद-माना ।।

देखिअत चक्रबाक खग नाहीं । कलिहिं पाइ जिमि धर्म पराहीं।।

विविध जंतु संकुल महि भ्राजा । प्रजा बाढ़ जिमि पाई सुराजा ।।

जहँ-तहँ रहे पथिक थकि नाना । जिमि इंद्रिय गन उपजे ग्याना ।।

अर्थ :  तुलसीदास कहते हैं कि बारिश के मौसम में चारों दिशाओं से आती हुई मेढ़कों की आवाज सुनकर ऐसा लग रहा है कि मानो विद्यार्थियों का कोई समूह वेदों का पाठ कर रहा हो। चारों तरफ पेड़ों पर नई नई कोपलें आ गई हैं। वे कोंपले ऐसी सुहावनी लग रही हैं कि जैसे साधना करने वाले किसी व्यक्ति को ज्ञान प्राप्त होने पर वह प्रफुल्लित हो जाता है।

मदार और जवासा के पौधे पत्तों से रहित हो गए हैं और इन पौधों को देखकर ऐसा लग रहा है कि राज्य में किसी अच्छे राजा के राज्य में दुष्टों का अंत हो गया हो। अब धूल मिट्टी खोजने पर भी नहीं मिलती। जिस तरह क्रोध आ जाने पर हम धर्म से दूर हो जाते हैं, उसी तरह बारिश ने धूल मिट्टी को दूर कर दिया है।

अनाज से लहलहाती आती हुई फसलों से युक्त पृथ्वी इस प्रकार दिखाई पड़ रही है, जैसे किसी परोपकारी व्यक्ति की संपत्ति शुभा प्रदर्शित करती है। रात के अंधकार में चमकते जुगनू देख कर ऐसा लगता है, जैसे घमंडियों का समूह एकत्रित हो गया हो।

चतुर किसान अपनी फसलों की पैदावार से व्यर्थ की घास फूस निकालकर इस तरह देख रहे हैं, जैसे विद्वान लोग अपने मन से क्रोध अहंकार मोह माया का त्याग कर देते हैं। बारिश के इस मौसम में चकवा पक्षी दिखाई नहीं दे रहा। इससे ऐसा लगता है कि जैसे कलयुग में धर्म पलायन कर गया हो।

तुलसीदास कहते हैं कि यह पृथ्वी भांति-भांति प्रकार के जीवों से युक्त होकर उसी प्रकार शोभायमान हो रही है। जैसे किसी अच्छे राजा के राज में सुखी प्रजा शोभायमान होती है। यहाँ पर अनेक तरह के थके हारे यात्री इस तरह रुके हुए हैं जैसे मनुष्य को ज्ञान प्राप्त हो जाने पर उसकी इंद्रियां थम जाती हैं ।

#SPJ3

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