दूध की मथनीया. ----------------------- तोरो अब मोही
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कवयित्री कहती है कि मैंने दूध की मशनियाँ को बड़े प्रेम से मथा है। इसमें दही को मथकर घी तो निकाल लिया और छाछ को छोड़ दिया है अर्थात् सार-तत्व को तो ग्रहण कर लिया और सारहीन अंश को छोड़ दिया है। मैं तो भक्तों को देखकर प्रसन्न होती हूँ और संसार के रंग-ढंग को देखकर रोती हूँ अर्थात् दुखी होती हूँ।
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