दूध का दाम कहानी का सार बताते हुए उनका उद्देश्य स्पष्ट कीजिए
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दूध का दाम कहानी का सार बताते हुए उनका उद्देश्य स्पष्ट कीजिए:
”दूध का दाम” नामक कहानी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई है| इस कहानी में कवि ने जाति-पाती,छुआछूत ,ऊंच नीच,धर्म-अधर्म तथा गरीबी-अमीर लोगों की सोच के बारे में वर्णन किया है | अमीर लोगों के द्वारा गरीब लोग हमेशा सताए जाते है|
प्रेमचंद द्वारा लिखित ‘दूध का दाम’ कहानी दलितों के प्रति समाज के दौरे रवैया को उजागर करती हुई एक कहानी है, जिसमें एक दलित को उसकी सेवा का फल तिरस्कार के रूप में मिलता है।
कहानी का सार यह है कि
एक दलित परिवार है, जिसका मुखिया गूदड़ नाम का व्यक्ति है। गूदड़ की पत्नी भूंगी है और उनका एक बच्चा मंगल भी है। भूंगी दाई का काम करती है। कहानी में महेशनाथ बाबू का परिवार भी है। महेश नाथ बाबू जाति से सवर्ण हैं। उनकी पत्नी को पुत्र पैदा होता है और पुत्र पैदा होने में भूंगी दाई का काम बखूबी करती है, इस कारण उसका महेशनाथ बाबू के परिवार में महत्व बढ़ जाता है।
भूंगी का पुत्र मंगल और महेशनाथ बाबू का पुत्र सुरेश दोनों लगभग समान आयु के हैं। लेकिन भूंगी अपने पुत्र मंगल को दूध ना पिला पाती है, क्योंकि महेश नाथ बाबू के पुत्र की पत्नी को दूध ना उतर पाने के कारण भूंगी को उनके बच्चे को दूध पिलाना पड़ता था। भूंगी को दूध पिलाने के लिए तरह-तरह के लालच दिए जाते हैं। इस तरह बच्चा बड़ा होता है पर जब उन लोगों का काम निकल जाता है तो वह लोग भूंगी को दुत्कार देते हैं। कहानी पर एक शास्त्री जी भी हैं जो महेश नाथ को धर्म का पाठ पढ़ाते हुए कहते हैं कि नीची जाति की भूंगी से तुम अपने बच्चे को दूध कैसे पिलवा रहे हो। इस तरह भूंगी द्वारा महेशनाथ के पुत्र को दूध पिलाना बंद करवा दिया जाता है।
समय बीतता रहता है। प्लेग की बीमारी के कारण गूदड़ मर जाता है और कुछ समय बाद भूंगी भी एक दुर्घटना में सांप द्वारा काटे जाने से मर जाती है। उनका लड़का मंगल अकेला रह जाता है। महेश नाथ बाबू के परिवार की बची हुई जूठन से उसका गुजारा चलता है।
एक बार महेश नाथ बाबू का लड़का सुरेश मंगल को खेल-खेल में घोड़ा बनने को कहता है और उस पर बैठ जाता है। इस प्रक्रिया में सुरेश गिर जाता है उसे चोट लग जाती है और महेश नाथ बाबू की पत्नी मंगल को खूब भला बुरा कहती है।मंगल को खाना भी नहीं मिलता वो भूखा प्यासा भटकता है और किसी तरह महेशनाथ बाबू और सुरेश का जूठन खाना पाकर अपने पेट की आग बुझाने की कोशिश करता है। तब वह खाना खाते हुए सोचता है कि उसकी माँ ने इस परिवार के पुत्र को दूध पिलाया और उस दूध का फल आज उसे इस तिरस्कार के रूप में मिल रहा है।
यहाँ इस कहानी में प्रेमचंद ने समाज के दोहरे रवैये पर कटाक्ष किया है। जहाँ नीची जाति के व्यक्ति से जब अपना काम निकलवाना होताहोता है, तब छुआछूत दिखाई नहीं देती। लेकिन जब उनके अधिकार देने की बात आती है तो छुआछूत नजर आती है। जब भूंगी से अपना काम निकलवाना था, तब महेश नाथ बाबू को उनकी नीची जाति नहीं दिखाई दी। लेकिन जब उन्हें उनके लड़के का ध्यान रखने की बात आई, तब छुआछूत की बात आ गई और उन्हें वह नीची जाति का दिखाई देने लगा।
कहते है दूध का दाम कोई नहीं चूका सकता और आज भूंगी के बेटे को यह दाम मिल रहा था |
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