दूध-दही की नदियाँ जिसके आँचल में कलकल करती हीरा, पन्ना, माणिक से है पटी जहाँ की शुभ धरती हल की नोंके जिस धरती की मोती से माँगें भरती उच्च हिमालय के शिखरों पर जिसकी ऊँची ध्वजा फहरती रखवाले ऐसी धरती के हाथ बढ़ाना क्या जाने मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने।
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