ठाउँ न रहत निदान, जियत जग में जस लीजै।
मीठे बचन सुनाय, विनय सबही की कीजै।
क. ठाउँ न रहत निदान का क्या अर्थ है?
ख. कवि ऐसा क्यों कह रहे हैं?
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- राम और लक्ष्मण ने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा| उनकी नजर सामने थी| सूरज की चमक फीकी पड़ने लगी थी । शाम होने को आई| राजकुमारों के चेहरे पर थकान का कोई चिह्न नहीं था| उत्साह था| वे दिनभर पैदल चले थे और अभी और भी चलने को तैयार थे|
- एक दिन एक सियार का किसी गाँव से गुजरत्र - गाँव के बाजार के
- पास लोगों को देखना • वहाँ दो तगड़े बकरों कीy आपस में लड़ाई होना • सभी
- लोगों का जोर-जोर से चिल्लाना और तालियाँ बजाना • दोनों बकरों का बुरी तरह
- से लहूलुहान होना और सड़क पर खून बहाना • इतना सारा ताजा खून देखकर
- अपने-आप को न रोक पाना • खून का स्वाद लेने के लिए बकरों पर टूट पड़ना
- सियार को देखकर बकरों के द्वारा अपनी शत्रुता भूल जाना • मिलकर सियार
- पर हमला बोल देना • सियार को वहीं मार देना।
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