Hindi, asked by ssrarun4826, 8 months ago

'देव' कविता का भावार्थ।​

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Answered by kajalmandal2007
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Answer:

परमात्मा

Explanation:

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Answered by sachintsrivastava
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पाँयनि नूपुर मंजु बजै, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।

साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।

माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई।

जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव’ सहाई॥

इस सवैये में कृष्ण के राजसी रूप का वर्णन किया गया है। कवि का कहना है कि कृष्ण के पैरों के पायल मधुर धुन सुना रहे हैं। कृष्ण ने कमर में करघनी पहन रखा है जिसकी धुन भी मधुर लग रही है। उनके साँवले शरीर पर पीला वस्त्र लिपटा हुअ है और उनके गले में फूलों की माला बड़ी सुंदर लग रही है। उनके सिर पर मुकुट सजा हुआ है जिसके नीचे उनकी चंचल आँखें सुशोभित हो रही हैं। उनका मुँह चाँद जैसा लग रहा है जिससे मंद मंद मुसकान की चाँदनी बिखर रही है। श्रीकृष्ण का रूप ऐसे निखर रहा है जैसे कि किसी मंदिर का दीपक जगमगा रहा हो।

डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,

सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।

पवन झूलावै, केकी-कीर बतरावैं ‘देव’,

कोकिल हलावै हुलसावै कर तारी दै।।

पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,

कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।

मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,

प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै॥

इस कवित्त में बसंत ऋतु की सुंदरता का वर्णन किया गया है। उसे कवि एक नन्हे से बालक के रूप में देख रहे हैं। बसंत के लिए किसी पेड़ की डाल का पालना बना हुआ है और उस पालने पर नई पत्तियों का बिस्तर लगा हुआ है। बसंत ने फूलों से बने हुए कपड़े पहने हैं जिससे उसकी शोभा और बढ़ जाती है। पवन के झोंके उसे झूला झुला रहे हैं। मोर और तोते उसके साथ बातें कर रहे हैं। कोयल भी उसके साथ बातें करके उसका मन बहला रही है। ये सभी बीच-बीच में तालियाँ भी बजा रहे हैं। फूलों से पराग की खुशबू ऐसे आ रही जैसे की घर की बूढ़ी औरतें राई और नमक से बच्चे का नजर उतार रही हों। बसंत तो कामदेव के सुपुत्र हैं जिन्हें सुबह सुबह गुलाब की कलियाँ चुटकी बजाकर जगाती हैं।

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देव

सवैया

पाँयनि नूपुर मंजु बजै, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।

साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।

माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई।

जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव’ सहाई॥

इस सवैये में कृष्ण के राजसी रूप का वर्णन किया गया है। कवि का कहना है कि कृष्ण के पैरों के पायल मधुर धुन सुना रहे हैं। कृष्ण ने कमर में करघनी पहन रखा है जिसकी धुन भी मधुर लग रही है। उनके साँवले शरीर पर पीला वस्त्र लिपटा हुअ है और उनके गले में फूलों की माला बड़ी सुंदर लग रही है। उनके सिर पर मुकुट सजा हुआ है जिसके नीचे उनकी चंचल आँखें सुशोभित हो रही हैं। उनका मुँह चाँद जैसा लग रहा है जिससे मंद मंद मुसकान की चाँदनी बिखर रही है। श्रीकृष्ण का रूप ऐसे निखर रहा है जैसे कि किसी मंदिर का दीपक जगमगा रहा हो।

कवित्त

डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,

सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।

पवन झूलावै, केकी-कीर बतरावैं ‘देव’,

कोकिल हलावै हुलसावै कर तारी दै।।

पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,

कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।

मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,

प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै॥

इस कवित्त में बसंत ऋतु की सुंदरता का वर्णन किया गया है। उसे कवि एक नन्हे से बालक के रूप में देख रहे हैं। बसंत के लिए किसी पेड़ की डाल का पालना बना हुआ है और उस पालने पर नई पत्तियों का बिस्तर लगा हुआ है। बसंत ने फूलों से बने हुए कपड़े पहने हैं जिससे उसकी शोभा और बढ़ जाती है। पवन के झोंके उसे झूला झुला रहे हैं। मोर और तोते उसके साथ बातें कर रहे हैं। कोयल भी उसके साथ बातें करके उसका मन बहला रही है। ये सभी बीच-बीच में तालियाँ भी बजा रहे हैं। फूलों से पराग की खुशबू ऐसे आ रही जैसे की घर की बूढ़ी औरतें राई और नमक से बच्चे का नजर उतार रही हों। बसंत तो कामदेव के सुपुत्र हैं जिन्हें सुबह सुबह गुलाब की कलियाँ चुटकी बजाकर जगाती हैं।

कवित्त

फटिक सिलानि सौं सुधारयौ सुधा मंदिर,

उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।

बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए ‘देव’,

दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद।

तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,

मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।

आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,

प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद॥

इस कवित्त में चाँदनी रात की सुंदरता का बखान किया गया है। चाँदनी का तेज ऐसे बिखर रहा है जैसे किसी स्फटिक के प्रकाश से धरती जगमगा रही हो। चारों ओर सफेद रोशनी ऐसे लगती है जैसे की दही का समंदर बह रहा हो। इस प्रकाश में दूर दूर तक सब कुछ साफ-साफ दिख रहा है। ऐसा लगता है कि पूरे फर्श पर दूध का झाग फैल गया है।है। उस फेन में तारे ऐसे लगते हैं जैसे कि तरुणाई की अवस्था वाली लड़कियाँ खड़ी हों। ऐसा लगता है कि मोतियों को चमक मिल गई है या जैसे बेले के फूल को रस मिल गया है। पूरा आसमान किसी दर्पण की तरह लग रहा है जिसमें चारों तरफ रोशनी फैली हुई है। इन सब के बीच पूरनमासी का चाँद ऐसे लग रहा है जैसे उस दर्पण में राधा का प्रतिबिंब दिख रहा हो।

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