दैव ना करें, आज मैं बीमार हो जाऊँ, तो तुम्हारे हाथ-पाँव फूल जाएँगे । दादा को तार देने के सिवा तुम्हें और कुछ न सूझेगा, लेकिन तुम्हारी जगह दादा हों, तो किसी को तार न दें, न घबराएँ, न बदहवास हों । पहले खुद मरज पहचान कर इलाज करेंगे, उसमें सफल न हुए, तो किसी डॉक्टर को बुलाएँगे । बीमारी तो खैर बड़ी चीज़ है। हम तुम तो इतना भी नहीं जानते कि महीने भर का खर्च महीना-भर कैसे चले । जो कुछ दादा भेजते हैं, उसे हम बीस बाइस तक खर्च कर डालते हैं और फिर पैसे-पैसे को मोहताज़ हो जाते हैं।
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हों, तो किसी को तार न दें, न घबराएँ, न बदहवास हों । पहले खुद मरज पहचान कर इलाज करेंगे, उसमें सफल न हुए, तो किसी डॉक्टर को बुलाएँगे । बीमारी तो खैर बड़ी चीज़ है।
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