दीवाने समाज से क्या लेकर जाते हैं?
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दीवाने समाज से क्या लेकर जाते हैं ?
दीवाने समाज से असफलता का भार लेकर जाते हैं।
‘दीवानों की हस्ती’ पाठ में कवि कहता है...
हम भिखमंगो की दुनिया में,
स्वच्छंद लुटा कर प्यार चले,
हम एक निशानी सी उर पर,
ले असफलता का भार चले,
अब अपना और पराया क्या,
आबाद रहे रुकने वाले,
हम स्वयं बँधे थे और स्वयं,
अपने बंधन तोड़ चले।
इस तरह इन पंक्तियों से स्पष्ट है कि दीवाने समाज से असफलता का भार लेकर जाते हैं।
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