Hindi, asked by pinkineware24, 2 months ago

द्वीति पनि
सखिपिन्सया
हिमसायच
/
शशि शर
भिव​

Answers

Answered by jaybibhutiyadav0208
0

Answer:

व्याख्या- बेसमझ लोगों के द्वारा यह श्लोक प्रायः सम-व्यवहार के उदाहरण रूप में प्रस्तुत किया जाता है। परन्तु इस श्लोक में ‘समवर्तिनः’ न कह कर ‘समदर्शिनः’ कहा गया है, जिसका अर्थ है- समदृष्टि, न कि सम-व्यवहार। यदि स्थूलदृष्टि से भी देखें तो ब्राह्मण , चाण्डाल, गाय , हाथी और कुत्ते के प्रति सम-व्यवहार असम्भव है। इनमें विषमता अनिवार्य है। जैसे, पूजन विद्या-विनययुक्त ब्राह्मण का ही हो सकता है, न कि चाण्डाल का; दूध गाय का ही पीया जाता है, न कि कुतिया का; सवारी हाथी पर ही की जा सकती है, न कि कुत्ते पर। जैसे शरीर के प्रत्येक अंग के व्यवहार में विषमता अनिवार्य है, पर सुख-दुःख में समता होती है अर्थात् शरीर के किसी भी अंग का सुख हमारा सुख होता है और दुःख हमारा दुःख। हमें किसी भी अंग की पीड़ा सह्य नहीं होती। ऐसे ही प्राणियों से विषम (यथायोग्य) व्यवहार करते हुए भी उनके सुख-दुःख में समभाव होना चाहिये।

Similar questions