History, asked by sharmaaman01019, 10 months ago

द्वितीय सदन (राज्यसभा) में प्रतिनिधित्व के लिए किन दो सिद्धान्तों का प्रयोग किया जा सकता है​

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Answered by harpreet2223
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राज्य सभा भारतीय लोकतंत्र की ऊपरी प्रतिनिधि सभा है। लोकसभा निचली प्रतिनिधि सभा है। राज्यसभा में २४५ सदस्य होते हैं। जिनमे १२ सदस्य भारत के राष्ट्रपति के द्वारा नामांकित होते हैं। इन्हें 'नामित सदस्य' कहा जाता है। अन्य सदस्यों का चुनाव होता है। राज्यसभा में सदस्य ६ साल के लिए चुने जाते हैं, जिनमे एक-तिहाई सदस्य हर २ साल में सेवा-निवृत होते हैं।

किसी भी संघीय शासन में संघीय विधायिका का ऊपरी भाग संवैधानिक बाध्यता के चलते राज्य हितों की संघीय स्तर पर रक्षा करने वाला बनाया जाता है। इसी सिद्धांत के चलते राज्य सभा का गठन हुआ है। इसी कारण राज्य सभा को सदनों की समानता के रूप में देखा जाता है जिसका गठन ही संसद के द्वितीय सदन के रूप में हुआ है। राज्यसभा का गठन एक पुनरीक्षण सदन के रूप में हुआ है जो लोकसभा द्वारा पास किये गये प्रस्तावों की पुनरीक्षा करे। यह मंत्रिपरिषद में विशेषज्ञों की कमी भी पूरी कर सकती है क्योंकि कम से कम 12 विशेषज्ञ तो इस में मनोनीत होते ही हैं। आपातकाल लगाने वाले सभी प्रस्ताव जो राष्ट्रपति के सामने जाते हैं, राज्य सभा द्वारा भी पास होने चाहिये। जुलाई 2018 से, राज्यसभा सांसद सदन में 22 भारतीय भाषाओं में भाषण कर सकते हैं क्योंकि ऊपरी सदन में सभी 22 भारतीय भाषाओं में एक साथ व्याख्या की सुविधा है।[3]

भारत के उपराष्ट्रपति (वर्तमान में वैकेया नायडू) राज्यसभा के सभापति होते हैं। राज्यसभा का पहला सत्र 13 मई 1952 को हुआ था।

Answered by dackpower
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द्वितीय सदन (राज्यसभा) में प्रतिनिधित्व

Explanation:

भारत के राज्य सभा के पास धन बिलों को छोड़कर लोकसभा के समान अधिकार हैं, जहाँ इसका कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। यह 250 सदस्यीय निकाय है, जिनमें से 12 को कला, साहित्य, विज्ञान और सामाजिक सेवाओं के क्षेत्र से नियुक्त किया जाता है। अन्य सदस्यों का चुनाव राज्य के विधायकों से बने एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है।

इसके विरुद्ध समकालीन तर्क दो प्राथमिक कोणों से आता है। पहला सुझाव है कि एक लोकसभा जिसमें कई क्षेत्रीय दलों से अधिक प्रतिनिधित्व है जो एक संघीय देश का पर्याप्त प्रतिनिधित्व करता है। भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पर हालिया उलटफेर व्यवहार में लोकसभा के इस संघीय चरित्र का एक उदाहरण है। दूसरा तर्क यह आरोप लगाता है कि राज्यसभा चुनावों में हारने वालों, पूंजीवादी पूंजीपतियों, समझौतावादी पत्रकारों और पार्टी के धन उगाहने वालों का अड्डा बन गया है। जानबूझकर होने से दूर, राज्यसभा लोकसभा के समान ही चंचलता और जुनून में उतरी हुई है और इससे उम्मीद की गई अलंकारिकता से दूर एक निराशाजनक प्रवृत्ति दिखाई दी है।

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संसद से हमारा मतलब ?brainly.in/question/6787390

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