Hindi, asked by simar1509, 9 months ago

दैव दैव आलसी पुकारा essay

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Answered by ankushmishra32
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जीवन के उत्थान में परिश्रम का महत्वपूर्ण स्थान होता है। जीवन में आगे बढ़ने के लिए, ऊंचा उठने के लिए और यश प्राप्त करने के लिए श्रम ही आधार है। श्रम से कठिन से कठिन कार्य संपन्न किए जा सकते हैं। जो श्रम करता है, भाग्य भी उसका ही साथ देता है। जो निष्क्रिय रहता है, उसका भाग्य भी साथ नहीं देता। श्रम के बल पर लोगों ने उफनती जलधाराओं को रोककर बड़े-बड़े बांधों का निर्माण कर दिया। इन्होंने श्रम के बल पर ही अगम्य पर्वत चोटियों पर अपनी विजय का ध्वज ठहरा दिया। श्रम के बल पर मनुष्य चंद्रमा पर पहुंच गया। श्रम के द्वारा ही मानव समुद्र को लांघ गया। खाइयों को पाट दिया तथा कोयले की खदानों से बहुमूल्य हीरे खोज निकाले। मानव सभ्यता और उन्नति का एकमात्र आधार स्वयं ही तो है। अतः परिश्रम ही मानव का सच्चा आभूषण है। क्योंकि परिश्रम के द्वारा ही मनुष्य अपने को पूर्ण बना सकता है। परिश्रम ही उसके जीवन में सौभाग्य, उत्कर्ष और महानता लाने वाला है। जयशंकर प्रसाद जी ने कहा है कि -

जितने कष्ट कंटकों में हैं, जिनका जीवन सुमन खिला,

गौरव-गंध उन्हें उतना ही, यत्र तत्र सर्वत्र मिला।

भाग्यवाद : अकर्मण्यता का सूचक : जिन लोगों ने परिश्रम का महत्व नहीं समझा; वह अभाव, गरीबी और दरिद्रता का दुख भोगते रहे। जो लोग मात्र भाग्य को ही विकास का सहारा मानते हैं, वह भ्रम में हैं। आलसी और अकर्मण्य व्यक्ति संत मलूकदास का यह दोहा उद्धृत करते हैं -

अजगर करे ना चाकरी, पंछी करे न काम।

दास मलूका कह गए, सबके दाता राम।।

मेहनत से जी चुराने वाले दास मलूका के स्वर में स्वर मिलाकर भाग्य की दुहाई के गीत गा सकते हैं। लेकिन यह नहीं सोचते कि जो चलता है, वही आगे बढ़ता है और मंजिल को प्राप्त करता है। कहा भी गया है –

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