द्विवेदी जी ने शिरीष के माध्यम से कोलाहल व संघर्ष से भरी जीवन - स्थितियों में अविचल रह कर जिजीविषु बने रहने की सीख दी है। स्पष्ट करें।
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शिरीष का फूल ऐसे समय में भी फलता फूलता है, जब पृथ्वी आग के समान प्रचंड गर्मी से तप रही होती है और इस प्रचंड गर्मी में भी शिरीष का पौधा कोमल फूलों से लहराता रहता है। शिरीष के पौधे पर प्रचंड गर्मी, धूप, वर्षा, आंधी, लू का कोई प्रभाव नहीं पड़ता और वह प्रकृति की इन सारी विषम परिस्थितियों का सामना करता है और अपने कोमल फूलों को खिलाकर यह सिद्ध कर देता है कि विकट परिस्थितियों में भी सुगमतापूर्वक रहा जा सकता है।
मनुष्य का जीवन भी कष्टों से भरा हुआ है। मनुष्य के जीवन में भी अनेक तरह के संघर्ष, विपत्ति, कष्ट, दुख आदि होते हैं। लेखक द्विवेदी जी शिरीष के फूल के माध्यम से मनुष्य को यही शिक्षा देते हैं कि मनुष्य को भी सदैव शिरीष के फूल की तरह जिजीविषा बनाये रखनी चाहिए। इस तरह शिरीष का पौधा विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए सदा अपने फूल को खिलाता रहता है, लहलहाता रहता है, उसी तरह मनुष्य को भी विषम परिस्थितियों में जीवन के संघर्षों का, कष्टों का सामना करते हुए जीने की इच्छा बनाए रखनी चाहिए। जीवन में कितनी भी कठिनाई क्यों ना आये, कितना भी दुख क्यों ना हो, उसको उन दुखों का सामना करके विजय प्राप्त करनी चाहिए। इसलिए द्विवेदी जी ने शिरीष के फूल की तरह मनुष्य को जिजीविषु बने रहने की सलाह दी है।
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