देवताओं ने श्री राम पर पुष्प की वर्षा क्यों की थी
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सीता स्वयंवर में श्रीराम ने तोड़ा धनुष, देवताओं ने की पुष्प वर्षा
दृश्य: तीन| सीता-श्रीराम का स्वयंवर
राजा जनक के करुण वचन सुनकर गुरु वशिष्ठ राम को स्वयंवर में भाग लेने का आदेश देते हैं। अपने गुरु की आज्ञा पाकर राम धनुष की ओर बढ़ते हैं तो उपस्थित राजा-महाराजा और योद्धाओं की नजर उन पर टिक जाती है। राम एक ही झटके में धनुष उठा लेते हैं और जैसे ही प्रत्यंचा चढ़ाने के लिए उसे मोड़ते हैं वैसे ही धनुष दो टुकड़े में टूटकर गिर जाता है। यह देख सभी राम की जय जयकार करने लगते हैं और सीता मंद-मंद मुस्कराने लगती हैं। देवता भी आकाश से पुष्प वर्षा कर उनका स्वागत करते हैं और सीता श्रीराम के गले में वरमाला डालती हैं।
दृश्य: दो | धनुष तोड़ने आए योद्धा
सीता स्वयंवर के लिए देशभर के राजाओं को आमंत्रित किया जाता है। जिसमें पाताल निवासी वाणासुर, लंकापति रावण सहित गुरुदेव मुनि विश्वामित्र के साथ राम और लक्ष्मण भी आते हैं। बड़े से बड़े पराक्रमी योद्धा प्रत्यंचा चढ़ाना तो दूर, धनुष को तिल मात्र तक हिला भी नहीं पाते हैं। रावण धनुष तोड़ने के लिए उठता है तो वाणासुर उसके मंसूबे पर पानी फेर देता है। जब कोई योद्धा धनुष उठा नहीं पाता है तो राजा जनक दुखी होने लगते हैं। वे कहते हैं कि क्या यह पृथ्वी वीरों से विहीन हो गई। राजा जनक के यह कथन सुन लक्ष्मण क्रोधित हो जाते हैं। इस दौरान दोनों के बीच संवाद होता है।
दृश्य: एक | इसलिए स्वयंवर का सोचा
राजा जनक महल में सीता को शिव के धनुष से खेलते हुए देखते हैं। सीता धनुष को आसानी से उठा लेती हैं, यह देख राजा जनक हैरान हो जाते हैं क्योंकि यह दिव्य धनुष इतना भारी होता है कि बड़े-बड़े शक्तिशाली राजा भी इसे हिला नहीं सकते थे। यह दृश्य देख राजा जनक को अहसास हुआ कि सीता कोई साधारण कन्या नहीं हैं वह कोई दिव्य आत्मा हैं, इसलिए उन्होंने प्रतिज्ञा कर ली कि सीता का विवाह किसी साधारण पुरुष के साथ नहीं करेंगे। उन्होंने सीता के स्वयंवर का मन बनाया और निश्चय किया जो शिव के धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाएगा वही सीता के योग्य समझा जाएगा
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