दिया । रस्सी के साथ बोरी का मुंह बांध दिया गया। चूंकि अब रात के दस
बजे थे, मैंने अपने नौकर अमरू से कहा कि "सबेरे बिल्ली को कहीं दूर
छोड़ आए जिससे वह इस घर में वापस न आ सके।"
सब लोगों को चाय पिलाते-पिलाते अमरु को अगले दिन आठ बज
गए। मैंने याद दिलाया कि उसे बिल्ली को भूली भटियारिन की तरफ छोड़
कर आना है । बोरी कंधे पर लटका अमरू चल दिया। बात आई गई हो
गई। मैं हजामत और स्नान आदि में व्यस्त हो गया क्योंकि साढ़े नौ बजे
दफ्तर जाना था। गुसलखाने में मुझे जोर का शोर सुनाई दिया । मैं नहाने में
नोव्हेंबरव्यस्त था और कुछ गुनगुना रहा था इसलिए मेरा ध्यान उधर नहीं गया । दो
मिनट के बाद ही फिर शोर हुआ । इस बार मैंने सुना कि मेरे घर के सामने
कोई आवाज लगा रहा है। 'आपका नौकर पकड़ लिया गया है। अगर आप
उसे छुड़ाना चाहते हैं तो छप्परवाले कुएँ पर पहुँचिए ।'
मैं हैरान हुआ कि क्या बात है । समझा शायद अमरू किसी की
साइकिल से टकरा गया होगा । शायद साइकिलवाले का कुछ नुकसान हो
गया हो और उसने अमरू को धर-पकड़ा हो । रही आदमी इकट्ठे होने की
बात, यह काम दिल्ली में मुश्किल नहीं और फिर करील बाग में तो बहुत
आसान है जहाँ सैकड़ों आदमियों को पता ही नहीं कि वे किधर जाएँ और
क्या करें । खैर, उधर जा ही रहा था कि रास्ते में खाली बोरी लटकाए अमरू
आता हुआ दिखाई दिया। वह खूब खिलखिलाकर हँस रहा था। उसे डाँटते
हुए पूछा- "अरे क्या बात हुई ? तूने आज सुबह-ही-सुबह क्या
गड़बड़ की जो इतना शोर मचा और मुहल्ले के लोग तुझे मारने को दौड़े ?"
अमरू को कुछ कहना नहीं पड़ा। उसके पीछे कुछ आदमी आ रहे थे,
उन्होंने मुझे सारा मामला समझा दिया । बात यह हुई कि जैसे अमरू कंधे पर
बोरी लटकाए बिल्ली को बाहर छोड़ने जा रहा था; कुछ लोगों को शक
हुआ कि बोरी में बच्चा है । दो आदमी चुपके-चुपके उसके पीछे हो लिए।
उन्होंने देखा कि बोरी अंदर से हिल रही है। बसे, उन्हें विश्वास हो गया कि
इस बदमाश ने किसी बच्चे को पकड़ा है। अमरू स्वभाव से अल्पभाषी है.
कुछ मसखरा भी है । वह चुप रहा । देखते-देखते पचासौं आदमी इकट्ठे हो
गए। उनमें से एक चिल्लाकर कहने लगा, "घेर लो इस आदमी को, यह
बदमाश उसी गिरोह में से है जिसका काम बच्चे पकड़ना है।" उस जगह से
पुलिस थाना भी बहुत दूर नहीं था । एक आदमी लपक कर थाने गया और
वहाँ से थानेदार और एक सिपाही को बुला लाया। थानेदार को देखते ही
एक उत्साही दर्शक अपने कुर्ते की बाहें ऊपर चढ़ाते हुए बोला, “दरोगा जी,
ऐसा नहीं हो सकता कि आप इस बदमाश को चुपचाप यहाँ से ले जाएँ और
कानूनी कार्यवाही की आड़ में इसे हवालात के मजे लेने दें। पहले इसकी
जी भर के मरम्मत होगी । गजब नहीं है कि भरे मुहल्ले से बच्चे उठा लिए
जाएँ ? दो दिन हुए पासवाली गली से एक बच्चा गुम हो गया । देवनगर से
तो कई उठाए जा चुके हैं। आप बाद में इसके साथ चाहे जो करें पहले हम
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चूंकि अब रात के दस
बजे थे, मैंने अपने नौकर अमरू से कहा कि "सबेरे बिल्ली को कहीं दूर
छोड़ आए जिससे वह इस घर में वापस न आ सके।"
सब लोगों को चाय पिलाते-पिलाते अमरु को अगले दिन आठ बज
गए। मैंने याद दिलाया कि उसे बिल्ली को भूली भटियारिन की तरफ छोड़
कर आना है । बोरी कंधे पर लटका अमरू चल दिया। बात आई गई हो
गई। मैं हजामत और स्नान आदि में व्यस्त हो गया क्योंकि साढ़े नौ बजे
दफ्तर जाना था। गुसलखाने में मुझे जोर का शोर सुनाई दिया । मैं नहाने में
नोव्हेंबरव्यस्त था और कुछ गुनगुना रहा था इसलिए मेरा ध्यान उधर नहीं गया । दो
मिनट के बाद ही फिर शोर हुआ । इस बार मैंने सुना कि मेरे घर के सामने
कोई आवाज लगा रहा है। 'आपका नौकर पकड़ लिया गया है। अगर आप
उसे छुड़ाना चाहते हैं तो छप्परवाले कुएँ पर पहुँचिए ।'
मैं हैरान हुआ कि क्या बात है । समझा शायद अमरू किसी की
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