दो युवकों की आपसी चर्चा का विषय है नौकरी को लेकर उनकी चिंता । संवाद लिखे
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अनिल – अरे अमित! यह थैला लटकाए कहाँ से आ रहे हो?
अमित – अनिल, मैं रोज़गार दफ़्तर से आ रहा हूँ।
अनिल – क्या नौकरी के रोज़गार दफ्तर से बुलावा आ गया है?
अमित – नहीं अनिल, अपना रजिस्ट्रेशन करवाने गया था, पर लाइन इतनी लंबी थी कि लौट आना पड़ा।
अनिल – यह लाइन वाली समस्या तो हर जगह की होती जा रही है।
अमित – जनसंख्या जो इतनी ज़्यादा होती जा रही है। इससे बेरोज़गारी बढ़ती जा रही है।
अनिल – माँ-बाप इतनी महँगी फ़ीस देकर पढ़ाई करवाते हैं और फिर काम न मिलने पर कितनी निराशा होती है।
अमित – बेरोज़गारी के कारण युवाशक्ति अवांछित गतिविधियों में शामिल होने लगती है।
अनिल – भूखा व्यक्ति आखिर हर काम करने पर उतार आता है।
अमित – मैं तो नौकरी करने के बजाय अपना रोज़गार लगाऊँगा ताकि कुछ और लोगों को भी काम दे सकूँ।
अनिल – काश ऐसा हर नवयुवक सोचता तो स्थिति ही कुछ और होती।
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