Hindi, asked by ayushmaan2722, 1 year ago

दो युवकों के बीच वरिष्ठ नागरिकों की समस्या के विषय में बातचीत!?...........plzzzzz give fast answer

Answers

Answered by dm720291gmailcom
1
इतिहास इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि प्राचीन काल में वृद्धों की सिथति अत्यंत उन्नत एवं सम्मानीय रही हैं। उन्हें समाज एवं परिवार में अलग वर्चस्व था। परिवार की समस्त बागडोर उनके हाथों हुआ करती थी। परिवार को कोर्इ फैसला उनकी सलाह व मसविरे के आधार पर होता था। उन्हीं की सत्ता एवं प्रभाव के कारण पहले संयुक्त परिवार हुआ करते थे, वे परिवार के सदस्यों को एक धागे में बांधें रखते थे, परंतु भौतिकवादी युग में वृद्धों की समस्याओं का बढ़ना एवं समाज में उनकी उपयोगिता कम और समस्याएं बढ़ती नजर आ रही है। बुढ़ापा जीवन का अंतिम पड़ाव है और इस पड़ाव में जीवन असक्त हो जा है। कार्य करने की क्षमता कमजोर हो जाती है। भरण-पोषण के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। यही निर्भरता वृद्धों की समस्याओं की मूल हैं। शारीरिक एवं आर्थिक दृषिट से घुटन भरी जिन्दगी जीने को विवश हो जाती है। चाहे वह शिक्षित हो या अशिक्षित क्यों न हो, इस अवस्था में उनकी गाड़ी चरमराने लगती है, वह युवा पीढ़ी से तालमेल नहीं बैठा पाते है, जिससे उनकी समस्याओं की वृद्धि हो जाती है। विश्व में समाज का बहुत बड़ा हिस्सा ऐसा है कि जहां वृद्धावस्था में अब सामाजिक एवं आर्थिक असुरक्षा के कष्ट झेलते है। युवा वर्ग वृद्धों को कोर्इ महत्व नहीं देते हैं।

 वृद्ध पुरूषों के समस्या के कारण :

आज हमारे देश में समस्याओं को बढ़ने के अनेक कारण है जो समाज की देन है। भारतीय समाज ऐसा समाज है जहां आज भी देखा जाता है लेकिन जैसे-जैसे पशिचमीकरण, भैतिकवाद का विकास हुआ वैसे-वैसे वृद्धों को उपेक्षा का शिकार होकर समस्याओं में घिर गये है। आज इन वृद्धों की समस्याओं के बहुत से कारण है, जो इस प्रकार है:-

1. संयुक्त परिवार का विघटन : संयुक्त परिवारों का अशांत व घुटन भरा माहौल और नगरों की ओर तेजी प्रस्थान करती हुर्इ युवा पीढ़ी को अपने वृजुर्गों के प्रति उदासीनता ने आज हमारे समाज में गंभीर समस्या उत्पन्न कर दी है। यह वही देश है कि जहां की संस्कृति में परिवार के बुजुर्गों को भगवान के समान माना जाता है और आज की पीढ़ी ने प्रथम पढ़ी नहीं होगी अगर पढ़ी होगी तो भी क्या आज के हर क्षण के बदलते परिवेश में इस प्रकार की आपेक्षा की जा सकती है। आज की नर्इ युवा पीढ़ी न तो बड़ों के अनुशासन में रहना चाहती और न ही आदर सम्मान कारना चाहती है।

2. भौतिक सुख सुविधाओं की वृद्धि : भौतिक सुख सुविधाओं की वृद्धि होने के कारण औधोगीकरण व संस्कृतिकरण के फलस्वरूप आज की युवा पीढ़ी का रहन-सहन एवं जीवन शैली में बदलाव तेजी से देखा जा रहा है। इस युग में कोर्इ भी व्यकित अपने कार्यों में इतना व्यस्त हो रहे है कि उन्हें अपने परिवार के सदस्यों के साथ बैठना अब आवश्यकता ही नही समझते है, जिसकी सबसे बड़ी पीड़ा बृजुर्गों को ही झेलनी पड़ती है। परिवार की अवधारणा केवल पति-पत्नी एवं बच्चों तक ही सीमित होने लगा है और ये वृद्ध समाज एवं परिवार के क्षेत्र या सीमा से बाहर होते जा रहे है। आज की युवा पीढ़ी अपनी भौतिक सुख-सुविधाओं को अधिक महत्व देते है और वृद्धों पर कम। व्यकित को अपने आराम की हर वस्तु खरीदने के लिए पर्याप्त पैसा होता है लेकिन वृद्धों के बीमारियों के लिए पैसे नहीं। नर्इ पीढ़ी को अकेले रहने की ललक है और वे इन वृद्धों को भूल जाते है। जो पालन-पोषण के अनेकों कष्टों का सामना करते है और स्वप्न सजोते है कि यही बालक बुढ़ापे की लाठी बनेगा लेकिन वह तो निष्ठुरता, अनैतिकता, भौतिक सुख-सुविधा, पाश्चात्य सभ्यता की गोद में सो जाते है।
वृद्ध पुरूषों की समस्याएं :
वृद्धावस्था को जीवन का अंतिम पड़ाव एवं समस्या से घिरी हुर्इ अवस्था माना जाता है क्योंकि इस अवस्था में वृद्धों को अनेक समस्याएं घेर लेती है, जिसके परिणामस्वरूप दूसरों के साथ संबंध स्थापित करने में असमर्थ रहते है। समय की रफतार के साथ-साथ समाज में नये नये परिवर्तन होने लगे हैं। नर्इ पीढ़ी के लोग पुराने विचारों के लोगों को अपने जीवन में आने को उपयुक्त नही समझते है। इस कारण युवा पीढ़ी उनके अनुभवों एवं विचारों की उपेक्षा करते है। वद्धों की समस्याओं एवं उनकी उपयोगिता भी समाज में कम होती नजर आने लगी है, जो इस प्रकार है:-

1 शारीरिक समस्या : वृद्धावस्था उतरते या ढलते काल है। इस अवस्था में शरीर शिथिल होने लगते है। वृद्धावस्था में शरीर में बदलाव का परिणाम सामाजिक बदलाव पर होता है। इस अवस्था में अनेक समस्याएं निर्मित होती है। कोर्इ व्यकित 60 साल में भी जवान दिखार्इ देता है तो कोर्इ 40 साल में ही वृद्ध दिखने लगता है। वृद्धावस्था में व्यकित के शरीर में झुर्रिया, चिड़चिड़ापन जैसे अनेक लक्षण दिखार्इ देने लगते है।

2 मानसिक समस्या : शारीरिक बदलाव के अनुसार मानसिक परिवर्तन भी होता है। इस अवस्था के प्रवेश करते ही मानसिक तनाव की सिथति बनने लगती है तथा लोगों से संपर्क बनाना सहयोगी या मित्रों के निधन हो जाने से मानसिक तनाव एक महत्वपूर्ण कारण है। सर्व विदित है कि यदि पति या पत्नी में से किसी एक की मृत्यु हो जाने से हीन भावना की वृिद्ध होती है तथा आत्मविश्वास का अभाव दिखने लगता है जिससे मानसिक विकृत, अकेलापन आदि जैसे दोष निर्माण होते है। अत: समाज को अपना कुछ भी उपयोग नहीं होने से निरूपयोगिता की भावना का जन्म होने लगता है।

3 स्वास्थ्य की समस्या : शारीरिक बदलाव के अनुसार मानसिक परिवर्तन भी होता है। इस अवस्था के प्रवेश करते ही स्वास्थ्य की समस्या बनने लगती है तथा लोगों से संपर्क बनाना सहयोगी या मित्रों के निधन हो जाने से स्वास्थ्य की समस्या एक महत्वपूर्ण कारण है।
Similar questions