दबाव, भला हो या बुरा, दोनों तरह अभिभूत करता है। कभी-कभी यह
दबाव दमोटू होता है-खास तौर पर उन लोगों के लिए जिनकी जड़े बहुत
पुरानी सभ्यताओं में होती हैं-मसलन भारत और चीन की सभ्यताएँ।
आखिर मेरी विरासत क्या है? मैं किन बातों का उत्तराधिकारी हूँ? क्या
उन सबका जिसे मानवता ने दसियों हजारों साल के दौरान हासिल किया।
उसकी विजयों के उल्लास का. उसकी पराजयों की दुखद यंत्रणा का, मानव
अतीत का दबाव
के उन हैरतअंगेज साहसिक कार्यों का जिनकी शुरुआत युगों पहले हुई और
जो अब भी जारी है और हमें आकर्षित करती हैं। मैं इस सबका वारिस हैं,
साथ ही उस सबका भी जिसमें पूरी मानव जाति की साझेदारी है। हम
भारतवासियों को विरासत में एक खास बात है, जो अनोखी नहीं है, क्योंकि
कोई व्यक्ति औरों से एकदम अलग नहीं होता। अलबत्ता एक बात हम लोगों
पर विशेष रूप से लागू होती है, जो हमारे रक्त, मांस और अस्थियों में समाई
है। इसी विशेषता से हमारा वर्तमान रूप बना है और हमारा भावी रूप बनेगा।
इसी विशिष्ट विरासत का विचार और वर्तमान पर इसे लागू करने की
बाल एक लबे अरसे से मेरे मन में घर किए है। मैं इसी के बारे में लिखना
चाहता हूँ। विषय की कठिनाई और जटिलता मुझे भयभीत करती है। मुझे
नगता है कि मैं सतही तौर पर इसका स्पर्श ही कर सकता हूँ।
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Sorry, i don't understand hindi
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