दहेज लाने के पक्ष में कौन था ?
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‘दहेज’ एक ऐसी कु-प्रथा है, जो सदियों से हमारे समाज में मौजूद है। और समाज का कोई भी वर्ग इससे अछुता नहीं है। लाख प्रयासों के बावजूद समाज को छोड़ने का नाम नहीं ले रही है। या यूं कहें कि इस कु-प्रथा का कोई छोर नज़र नहीं आता, जहां से इसे सुलझाने की कोशिश की जा सके। हालांकि दहेज की संवैधानिक परिभाषा-‘‘अनुच्छेद 2 के अनुसार, ‘दहेज’ का शब्दिक अर्थ ऐसी प्रॉपर्टी या मूल्यवान वस्तु (समान, पैसा या और कोई वस्तु) से है, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लड़की पक्ष द्वारा शादी के वक्त लड़का पक्ष को दी जाती है।’’ दहेज की परिभाषा देते हुए फेयर चाइल्ड ने लिखा है कि, ‘‘दहेज वह धन या संपत्ति है, जो विवाह के उपलक्ष्य पर लड़की के माता-पिता या अन्य संबंधियों द्वारा वर पक्ष को दिया जाता है।’’ दहेज एक ऐसी सामाजिक बुराई है, जिसके चलते सैकड़ों नव-विवाहिताओं को आज भी असमय मौत का ग्रास बनना पड़ता है। इसमें भी सबसे ज्यादा मौतें जलने के परिणामस्वरूप होती हैं। कुछ युवतियों को ससुराल पक्ष द्वारा जबर्दस्ती जिंदा जला दिया जाता है, तो कुछ औरतों को दहेज के लिए ससुराल में इतना परेशान किया जाता है कि वे जलकर आत्महत्या कर लेती हैं। इस आलोच्य में किसी भी अस्पताल के बर्न विभाग में देखें, तो वहां महिलाएं इस प्रकरण में दर्द से कहारती नज़र आ जाती हैं। इनमें से अधिकतर समाज की आपराधिक मानसिकता का शिकार होकर दर्द से छटपटा रही होती हैं। ‘‘आंकड़ें गवाह हैं कि अधिकांश दुल्हन जलाने की घटनाएं, दहेज मौतें या विवाहिता हत्या के मामले लड़की के ससुराल वालों की उन अतृप्त मांगों के परिणाम होते हैं, जिन्हें लड़की के माता-पिता पूरा नहीं कर पाते हैं।’’ दहेज का आर्थिक पक्ष इस कुरीति का सबसे खौफ़नाक पक्ष है। यदि वर पक्ष को इच्छित दहेज नहीं मिलता, तो वह नव-विवाहिता पर शारीरिक और मानसिक जुल्म देना शुरू कर देता है। नव-विवाहिता को तरह-तरह से तंग किया जाता है, उसे अधिक-से-अधिक दहेज लाने के लिए खिलाफ़ एक व्यापक अभियान चलाया जाना जरूरी है
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