दहेज प्रथा नैतिक मूल्यों का हनन कर रही है। कैसे?
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दहेज दहेज एक बहुत ही महत्वपूर्ण सामाजिक कुरीति है आज लोग दहेज के लिए अपनी पत्नी और बहू को बहुत ज्यादा पीड़ा देते हैं और किसी गरीब के पास दहेज के लिए पैसे नहीं हैं तो उसकी बेटी से कोई शादी नहीं करना चाहता दहेज इंसान के विवेक और बुद्धि को नष्ट कर रहा है इंसान या नहीं सोचता कि दहेज लेना और देना दोनों ही सजा है
दहेज प्रथा नैतिक मूल्यों का हनन है
दहेज प्रथा नैतिक मूल्यों का हनन है क्योंकि यह नैतिक दृष्टि से किसी भी तरह उचित नहीं है। यह प्रथा कन्या के पिता और स्वयं कन्या पर एक अमानवीय और असामाजिक अत्याचार के समान है, जिसके कारण लड़की का पिता अनावश्यक दबाव में रहता है और लड़की स्वयं भी दहेज प्रथा के कारण भय के साये में रहती है।
दहेज लेना व देना किसी भी तरह से उचित नहीं है, परंतु यह प्रथा समाज में आज भी जोर-शोर से जारी है। सरकार ने लाखों कानून बनाए लाखों बंदिशें लगाई हों, लेकिन यह प्रथा फिर भी बदस्तूर चालू है।
दहेज प्रथा किसी भी लड़की के मौलिक अधिकारों का हनन है, यह उसके आचरण, उसकी योग्यता, उसके अस्तित्व, उसके व्यक्तित्व पर कुठाराघात के समान है। जिस तरह हर मानव अपने कुछ मौलिक अधिकार लेकर पैदा होता है। उसी तरह किसी भी लड़की के कुछ मौलिक अधिकार होते हैं।
विवाह के लिए दहेज की अनिवार्यता उसके मौलिक अधिकारों का हनन है, इसलिए यह समाज की नैतिकता को नष्ट करती है और नैतिक मूल्यों का हनन करती है। जो लड़की अच्छी शिक्षा प्राप्त कर अच्छे पद पर कार्यरत होती है उसे भी दहेज लाना पड़ता है, तब उसकी सारी शिक्षा, उसकी योग्यता, उसकी क्षमता पर दहेज एक कलंक के समान है, एक कुठाराघात है।
विवाह तो दो दिलों का बंधन है, इसमें दहेज का लालच देकर दो दोनों को बाँध देना कहाँ की नैतिकता है। लड़का-लड़की के बीच विवाह हो तो पंसद और योग्यता के आधार पर हो। दहेज के सहारे बेमेल विवाह करवाना कहाँ की नैतिकता है। इसलिए दहेज प्रथा नैतिक मूल्यों का हनन है।