थह पत्र किसके बारे में हैं? पाठ का नाम दिल्ली से पत्र
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नई दिल्ली: ''पिता के पत्र' महज एक किताब का नाम नहीं है बल्कि यह एक पिता की भूमिका में बेटी को लिखा गया जवाहर लाल नेहरू के वह पत्र हैं जो सभ्यता की सबसे सुंदर और सरल व्याख्या करती है. किताब में एक तरफ नेहरू के विचार हैं तो वहीं उन विचारों को कहानी के सम्राट प्रेमचंद ने इतनी सरल भाषा में पेश किया है कि पत्र सिर्फ पत्र न रहे बल्कि पिता और बेटी के बीच की भावनात्मक कहानी बन गई.
यह पत्र जवाहरलाल नेहरू ने बेटी इंदिरा को लिखे थे. इन पत्रों के संग्रह 'लेटर फ्रॉम फादर टू हिज डॉटर' नाम की पुस्तक में छपी जिसे बाद में प्रेमचंद ने हिन्दी में अनुवाद किया. ''पिता के पत्र'' किताब में नेहरू का कुदरत के प्रति लगाव और बेटी का देश-दुनिया के सरोकारों के प्रति एक दृष्टि विकसित कर सकने की चिंता देखी जा सकती है. इस किताब में जो पत्र हैं वह जवाहर लाल नेहरू ने 1928 में लिखी थी. उस वक्त इंदिरा गांधी सिर्फ 10 साल की थीं.
दरअसल 2 साल यूरोप में रहने के बाद जब 1927 में जवाहरलाल नेहरू, कमला नेहरू और इंदिरा मद्रास के रास्ते भारत लौटे तो जहाज के उपर खड़ी इंदिरा ने पिता नेहरू से कई सवाल किए. यह संसार कैसे बना ? तरह-तरह के जीव कैसे बने? मनुष्यों की सभ्यता कैसे विकसित हुई? अलग-अलग राष्ट्र, धर्म और जातियां कैसे बनीं? अनेकों सवाल इंदिरा के जहन में उठ रहे थे और वह पिता नेहरू से पूछ रही थी.
जब 1928 की गर्मी आईं तो इंदिरा मसूरी में थीं और पंडित नेहरू इलाहाबाद में. इस दौरान उन्होंने इंदिरा को 31 पत्र लिखे और इनमें इंदिरा के उन सवालों का जवाब देने की कोशिश की जो वह अक्सर पूछा करती थी.
नेहरू ने अपने पत्र में इंदिरा को सभ्यता, धर्म, जाति समेत कई पहलूओं की जानकारियां दी. उन्होंने अपने पहले ही पत्र में लिख ''जब तुम मेरे साथ रहती हो तो अक्सर मुझसे बहुत-सी बातें पूछा करती हो और मैं उनका जवाब देने की कोशिश करता हूं. लेकिन, अब, जब तुम मसूरी में हो और मैं इलाहाबाद में, हम दोनों उस तरह बातचीत नहीं कर सकते. इसलिए मैंने इरादा किया है कि कभी-कभी तुम्हें इस दुनिया की और उन छोटे-बड़े देशों की जो इन दुनिया में हैं, छोटी-छोटी कथाएं लिखा करूं.''
इसके बाद एक-एक कर के नेहरू ने कई खत लिखे और इन खतों को पढ़ने से साफ पता चलता है कि कितनी सहजता से एक पिता अपनी बेटी को लाखों साल का इतिहास बड़ी आसानी से समझा देता है.
नेहरू ने बेटी इंदिरा को लिखे खत में क्या-क्या बताया
संसार एक पुस्तक है
नेहरू ने इंदिरा को कहा कि वह इतिहास की किताबें तो पढ़ती हैं मगर उनको अगर उस वक्त के बारे में जानना है जब किताबें नहीं छपती थी तो उन्हें संसार-रूपी पुस्तक को पढ़ने की जरूरत है. उन्होंने अपने खत में लिखा, ''तुम इतिहास किताबों में ही पढ़ सकती हो लेकिन पुराने जमाने में तो आदमी पैदा ही न हुआ था. किताबें कौन लिखता? तब हमें उस जमाने की बातें कैसे मालूम हों? यह तो नहीं हो सकता कि हम बैठे-बैठे हर एक बात सोच निकालें. यह बड़े मजे की बात होती, क्योंकि हम जो चीज चाहते हैं सोच लेते हैं, और सुंदर परियों की कहानियां गढ़ लेते हैं. लेकिन जो कहानी किसी बात को देखे बिना ही गढ़ ली जाए वह ठीक कैसे हो सकती है? लेकिन खुशी की बात है कि उस पुराने जमाने की लिखी हुई किताबें न होने पर भी कुछ ऐसी चीजें हैं जिनसे हमें उतनी ही बातें मालूम होती हैं जितनी किसी किताब से होतीं. ये पहाड़, समुद्र, सितारे, नदियां, जंगल, जानवरों की पुरानी हड्डियां और इसी तरह की और भी कितनी ही चीजें हैं जिनसे हमें दुनिया का पुराना हाल मालूम हो सकता है. मगर हाल जानने का असली तरीका यह नहीं है कि हम केवल दूसरों की लिखी हुई किताबें पढ़ लें, बल्कि खुद संसार-रूपी पुस्तक को पढ़ें."