'दहज़ प्रथा-एक सामाजिक कुरीति' विषय पर 100-150 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए।
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धारण नहीं की थी, किन्तु शनै-शनै: यह विकृत स्वरूप धारण करती गई और दहेज-प्रथा जैसे कलंकित नाम से ‘अलंकृत’ हो गई ।
चिन्तनात्मक विकास:
विज्ञान ने समस्त विश्व को सीमित कर दिया है । इतनी विशाल दुनिया सिमट कर रह गई है । हम इसके सहारे न जाने कहाँ-कहाँ तक पहुँच गए हैं और दूसरी ओर हम घिसी-पिटी परम्परा पर ही जमकर बैठ गए हैं । कहाँ तक इसमें औचित्य है ।
यह एक प्रकार से चिन्तनीय विषय है । इस प्रथा का अभाव गाँवों में ही नहीं अपितु नगरों र्मे भी है । सुसंस्कृत एयै सुशिक्षित नगरवासियों में भी दहेज रूप में धन-लोलुपता बढ़ती चली जा रही है । लड़के की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति के आधार पर यह दहेज लड़की वालों से माँगा जाता है । यदि लड़का कहै। अच्छे क्या ऊँचे पद पर है तो दहेज की मात्रा की माँग और अधिक बढ़ जाती है ।
लड़की वाले की स्थिति के बिषय र्मे ये कभी विचार ही नहीं करते । परिणामस्वरूप लड़की के माता-पिता दहेज जुटाने में कर्जदार भई। हो जाते हैं । लड़कियों द्वारा विवाह से पूर्व ही दहेज न देने के कारण आत्मक्ष्मायें कर जी जाती हैं । अथवा नवविवाहिता द्वारा कम दहेज देने या दहेज न देने के कारण आत्महत्यार्ये कर ली जाती हैं । आज प्रतिदिन ऐसी घटनाऐं देखने एवं सुनने र्मे आती हैं ।
दहेज की माँग से तो ऐसा मालूम होता है कि यह विवाह न होकर लड़के का सौदा हो रहा है । हमारे देश मे हर जगह हर वर्ग र्मे दहेज प्रथा का विकृत स्वरूप व्याप्त है । यद्यपि देश में समाजसुधारको एब धर्मतत्ववेत्ताओं की कमी नहीं रही है तथापि यह ‘कुप्रथा’ दिन पर दिन विकट रूप धारण करती जा रही हैं-यह बडे खेद का विषय है ।