दक्कनी शैली की चित्रकला पर निबंध लिखे
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ऐतिहासिक पृष्ठभूमि चौदहवीं शताब्दी में दक्षिणी भारत के दो महत्वपूर्ण राज्यों का उदय भारतीय कला इतिहास में कला विकास की दृष्टि उल्लेखनीय है 1336 ईस्वी में स्थापित विजयनगर साम्राज्य और 1347 ईसवी में स्थापित बहमनी सल्तनत इन दोनों रियासतों के मध्य संघर्ष चलता रहा परंतु विविध कलाओं के विकास के लिए दोनों ही राज्य सकारात्मक रहे शासकों ने कलाओं को यथाशक्ति संरक्षण व प्रोत्साहन दिया | विजयनगर साम्राज्य की स्थापना हरिहर एवं बुक्का नामक दो भाइयों द्वारा की गई यह दक्षिण का एक वैभवशाली साम्राज्य बना जिसका विस्तार कृष्णा से कावेरी प्रथा बंगाल की खाड़ी से अरब सागर तक था इस राज्य में सनातन संस्कृति कला साहित्य की प्रचुर उन्नति हुई राजा कृष्ण देव इस राज्य के श्रेष्ठ राजाओं में से एक है विजयनगर की चित्रकला में अजंता की रुचिता दिखाई देती है हालांकि अपभ्रंश शैली के लक्षण यहां भी उपस्थित है लेपाक्षी वीरभद्र मंदिर की भूमियों पर अंकित विजयनगर की चित्रकला के उद्भूत उदाहरण दर्शनीय हैं | विजयनगर साम्राज्य के समानांतर ही बहमनी साम्राज्य की स्थापना हुई सल्तनत का नाम सुल्तान अलाउद्दीन बहमनी सहा से बहमनी सल्तनत पड़ा इस रियासत में फिरोजा सहा विद्वान वह कला प्रेमी शासक हुआ वह विभिन्न भाषाओं के साथ गणित व विज्ञान के प्रति भी अत्यंत रुचि रखता था इस सल्तनत ने उत्तर व दक्षिण के मध्य सांस्कृतिक सेतु का कार्य किया किस राज्य ने ईरानी प्रभाव वाली चित्रकला का विकास हुआ यहां पंथी कला इतिहास मैं दक्षिणी से निकल आती हैं अहमद शाह वर्ली बहमनी ने बीदर दुर्ग के रंगमहल में बेल बूटों की प्रधानता वाला चित्रांकन करवाया था| बहमनी शासक धर्मभीरू थे जिस कारण पड़ोसी राज्य विजयनगर में पल्लवित सनातनी कला को न तो अपनाना पाया और नाही कुछ सीख पाए 15वीं शताब्दी में सत्ता लोलुपतावश आपस में लड़कर यह रियासत पांच राज्यों में बढ़ गई एक अहमदनगर दूसरा बीजापुर गोलकुंडा विरार और बीदर लेकिन सत्ता विस्तार की कामना से इन पांचों राज्यों ने एक होकर विजयनगर के गौरवशाली राधिका प्राप्त कर दिया तथा पुनः पांचों अलग हो गए बाद में अमर नगर ने बिहार को व बीजापुर ने बीदर को अपने अधीन कर लिया ऐतिहासिक दृष्टि से इन रियासतों की कला महत्वपूर्ण है यहां की कला ईरानी प्रभाव युक्त हैं परंतु मुगल कला से भिन्न है कला इतिहास हरमैन गोल्ड टच के अनुसार दक्खिनी चित्रकला पर दक्षिणी ईरानी व अरेबियन कला का प्रभाव पड़ा तथा मुगल चित्रकला पर उतरी ईरानी व तुर्की कलाकार प्रभाव पड़ा
अहमदनगर_ विजयनगर साम्राज्य को हराने में अहमदनगर के सुल्तान हुसेन निजामशाही की अहम भूमिका थी उसकी मृत्यु के पश्चात बालक मृर्तजा को वारिस घोषित किया गया परंतु राज्य का कामकाज मृर्तजा की मां संभालती रही बाद में अकबर की सहायता से मृर्तजा से उसके छोटे भाई बुरहान ने सत्ता हासिल की| मुर्तजा के समय तारीफ ए हुसैन शाही नामक ग्रंथ का चित्रण हुआ जिस पर मालवा के नियाम तनामा का प्रभाव दिखाता है इस ग्रंथ में हुसैन निजामशाही के विवाह दृश्यों में नारियों का मनोरम वह भावपूर्ण चित्रण हुआ है इसकी वेशभूषा उत्तर भारतीय हैं
बीजापुर~ बीजापुर आदिलशाह सुल्तानों की सल्तनत थी यहां के सुल्तान स्माइल आदिलशाह स्वयं चित्रकार थे इतिहास प्रसिद्ध विदुषी चांद सुल्ताना उसी राज्य के सुल्तान अली आदिलशाह प्रथम की पत्नी थी जो स्वयं चित्रकला में निपुण थी खगोल विद्या पर आधारित सचित्र ग्रंथ नुजूम अल उलूम की रचना इन्हीं के समय की गई बीजापुर के अधिसंख्य सुल्तानों का झुकाव चित्रकला के प्रति रहा अपनी सूची के अनुसार इन्होंने चित्र बनाएं एवं चित्रकारों को प्रोत्साहित किया यहां की कला पर जहांगीर कालीन मुगल कला का व्यापक प्रभाव पड़ा चंदन वन में स्त्री हाथियों की लड़ाई चांद बीबी पोलो खेलते हुए मादी यहां के प्रति चित्र हैं यहां चेहरा चमकदार पृष्ठभूमि साधारण परंतु हरी-भरी अंकित की गई सुरब यहां चेहरा चमकदार पृष्ठभूमि साधारण परंतु हरी-भरी अंकित की गई हैं 16वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में यहां की कला में मौलिकता नष्ट हो गई
गोलकुंडा~ बहमनी सल्तनत के पतन के पश्चात गोलकुंडा कुतुब साही सुल्तान ओके आधिपत्य मैं आ गया इब्राहिम क़ुतुब शाह 1550 यशवी मैं यहां का शासक बना बाद में इन रियासत की राजधानी हैदराबाद बनाई गई यह राजवंश मूलत: इरानी था जिस कारण ईरानी सत्ता से यहां के मथुर संबंध थे अनंत व्यापारिक केंद्र होने के कारण यह धनवान रियासत थी कला विकास के लिए शासक प्रचुर धन व्यय करते थे हीरो के लिए भी गोलकुंडा की ख्याति थी यहां के नारी चित्र सौंदर्य से परिपूर्ण है मैना और स्त्री शीर्षक वाला चित्र इसका उदाहरण है जो डबलिन के चेस्टर बेरी संग्रहालय मैं सुरक्षित हैं मोहम्मद क़ुतुब शाह के समय दरबारी दृश्य व मूर्तियों का सुंदर अंकन हुआ है हैदराबाद गोलकुंडा दोनों ही स्थानों पर चित्रकला का श्रेय विकास हुआ है उमरावो दरबारियों राग रानियों के अनुपम चित्र बने हैं तुजुक ए आसफी यहां का एक उल्लेखनीय चित्रण ग्रंथ हैं नारी चित्रण को गोलकुंडा शैली ने नई ऊंचाइयां दी परंतु कालांतर में इन शैली पर मराठा चित्रकला व मीनाकारी का प्रभाव पड़ गया जिससे उसकी मौलिकता नष्ट हो गई
दक्कनी शैली की चित्रकला
दक्कनी पेंटिंग, लघु चित्रकला की शैली जो 16वीं शताब्दी के अंत से प्रायद्वीपीय भारत में दक्खनी सल्तनतों के बीच फली-फूली। शैली स्वदेशी और विदेशी कला रूपों का एक संवेदनशील, अत्यधिक एकीकृत मिश्रण है। दक्कनी स्कूल के चित्रों के रंग समृद्ध और शानदार हैं। यह उत्तरी चित्रों से भिन्न है। 18वीं और 19वीं शताब्दी के दक्खनी चित्रों की अनूठी विशेषताओं को जातीय प्रकारों, परिदृश्य परिधानों, आभूषणों, वनस्पतियों, जीवों और रंगों के उपचार में देखा जाता है। चित्रकला की दक्कनी शैली को लंबे समय तक भारत-फारसी कला के अंतर्गत रखा गया था। इसे मूल रूप से मध्य पूर्वी, सफाविद, फारसी, तुर्की और यहां तक कि मुगल भी माना जाता था।
विभिन्न प्रकार के दक्खनी चित्र: विजयनगर, बहमनी आदि के राजाओं ने मुगल और राजस्थानी लघु चित्रों से प्रभावित लघु चित्रों का संरक्षण किया। नागरा, बीजापुर और चित्रकला की गोलकुंडा शैली की जड़ें भी इसी क्षेत्र में हैं।
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