दक्षिण भारत में रामायण की रचना किसने की?
Answers
Answer:
दक्षिण भारत में रामायण की रचना कंबन "कविचक्रवर्ती" की।
इस रामायण का नाम "कंब रामायण" है।
कंब रामायण के बारे में
उपलब्ध ग्रंथ में 10,050 पद्य हैं और बालकांड से युद्धकांड तक छह कांडों का विस्तार इसमें मिलता है। इससे संबंधित एक उत्तरकांड भी प्राप्त है जिसके रचयिता कंबन के समसामयिक एक अन्य महाकवि "ओट्टककूत्तन" माने जाते हैं। पौराणिकों के कारण कंब रामायण में अनेक प्रक्षेप भी जुड़ गए हैं किंतु इन्हें बड़ी आसानी से पहचाना जा सकता है क्योंकि कंबन की सशक्त भाषा और विलक्षण प्रतिपादन शैली का अनुकरण शक्य नहीं है।
कंब रामायण का कथानक वाल्मीकि रामायण से लिया गया है, परंतु कंबन का मूल रामायण का अनुवाद अथवा छायानुवाद न करके, अपनी दृष्टि और मान्यता के अनुसार घटनाओं में सैकड़ों परिवर्तन किए हैं। विविध परिस्थितियों के प्रस्तुतीकरण, घटनाओं के चित्रण, पात्रों के संवाद, प्राकृतिक दृश्यों के उपस्थापन तथा पात्रों की मनोभावनाओं की अभिव्यक्ति में पदे-पदे मौलिकता मिलती है। तमिल भाषा की अभिव्यक्ति और संप्रेषणीयता को सशक्त बनाने के लिए भी कवि ने अनेक नए प्रयोग किए हैं। छंदोविधान, अलंकारप्रयोग तथा शब्दनियोजन के माध्यम से कंबन ने अनुपम सौंदर्य की सृष्टि की है। सीता-राम-विवाह, शूर्पणखा प्रसंग, बालिवध, हनुमान द्वारा सीता संदर्शन, इंद्रजीतवध, राम-रावण-युद्ध आदि प्रसंग अपने-अपने काव्यात्मक सौंदर्य के कारण विशेष आकर्षक हैं। लगता है, प्रत्येक प्रसंग अपने में पूर्ण है और नाटकीयता से ओतप्रोत है। घटनाओं के विकास के सुनिश्चित क्रम हैं। प्रत्येक घटना आरंभ, विकास और परिसमाप्ति में एक विशिष्ट शिल्पविधान लेकर सामने आती है।
वाल्मीकि ने राम के रूप में "पुरुष पुरातन" का नहीं, अपितु "महामानव का चित्र उपस्थित किया था, जबकि कंबन ने अपने युगादर्श के अनुरूप राम को परमात्मा के अवतार के साथ आदर्श महामानव के रूप में भी प्रतिष्ठित किया। वैष्णव भक्ति तत्कालीन मान्यताओं और जनता की भक्तिपूत भावनाओं से जुड़े रहकर इस महाकवि ने राम के चरित्र को महत्तापूरित एवं परमपूर्णत्व समन्वित ऐसे आयामों में प्रस्तुत किया जिनकी इयत्ता और ईदृक्ता सहज ग्राह्य होते हुए भी अकल्पनीय रूप से मनोहर किंवा मनोरम थी। यह निश्चित ही कंबन जैसा अनन्य सुलभ प्रतिभावान् महाकवि ही कर सकता था।
कंब रामायण का प्रचार प्रसार केवल तमिलनाडु में ही नहीं, उसके बाहर भी हुआ। तंजौर जिले में स्थित तिरुप्पणांदाल मठ की एक शाखा वाराणसी में है। लगभग 350 वर्ष पूर्व कुमारगुरुपर नाम के एक संत उक्त मठ में रहते थे। संध्यावेला में वे नित्यप्रति गंगातट पर आकर कंब रामायण की व्याख्या हिंदी में सुनाया करते थे। गोस्वामी तुलसीदास उन दिनों काशी में ही थे और संभवत: रामचरितमानस की रचना कर रहे थे। दक्षिण में जनविश्वास प्रचलित है कि तुलसीदास ने कंब रामायण से प्ररेणा ही प्राप्त नहीं की, अपितु मानस में कई स्थलों पर अपने ढंग से, उसकी सामग्री का उपयोग भी किया। यद्यपि उक्त विश्वास की प्रामाणिकता विवादास्पद है, तो भी इतना सच है कि तुलसी और कंबन की रचनाओं में कई स्थलों पर आश्चर्यजनक समानता मिलती है।
श्री वी.वी.एस. अय्यर (कंब रामायण - ए स्टडी) के अनुसार "कंब रामायण" विश्वसाहित्य में उत्तम कृति है। इलियड, पैराडाइज़ लॉस्ट और महाभारत से ही नहीं, वरन् आदिकाव्य वाल्मीकि रामायण की तुलना में भी यह अधिक सुंदर है।"