दक्षिण एशिया के देशों के बीच आर्थिक सहयोग की राह तैयार करने में दक्षेस ( सार्क) की भूमिका और सीमाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें I दक्षिण एशिया की बेहतरी में ‘ दक्षेस ‘ ( सार्क) ज्यादा बड़े भूमिका निभा सके, इसके लिए आप क्या सुझाव देंगे?
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"दक्षेश की शुरुआत 1985 में हुई| दक्षेश( साउथ एशियन एसोसिएशन फॉर रीजनल कोऑपरेशन सार्क) की स्थापना दक्षिण एशियाई देशों द्वारा बहुस्तरीय साधनों से आपस में सहयोग करने हेतु की गई थी| परंतु सदस्य देशों की आपसी मतभेदों की वजह से दक्षेश को ज्यादा सफलता नहीं मिली| सदस्य देशों ने सन 2002 में दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र समझौते( साफ्टा) पर हस्ताक्षर किए| और पूरे दक्षिण एशिया को मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने का वादा किया|
अगर दक्षेश के सभी देश सीमा रेखा के आर- पार मुक्त व्यापार पर सहमत हो जाते तो यह क्षेत्र शांति और सहयोग से विश्व स्तर पर अपनी बड़ी पेंठ जमाने में कामयाब होता| इस समझौते पर 2004 में हस्ताक्षर हुए और यह समझौता 1 जनवरी 2006 से प्रभावी हुआ| इस समझौते का लक्ष्य है कि इन देशों के बीच आपसी व्यापार में लगने वाली सीमा शुल्क को 2007 तक 20% से कम कर दिया जाए|
दक्षेश की कुछ निम्नलिखित सीमाएं हैं-
1. कुछ छोटे देश मानते हैं कि ' साफ्टा' की आड़ में भारत उनके बाजार में सेंध मारकर व्यवसायिक मौजूदगी के जरिए उनके समाज और राजनीति पर असर डालना चाहता है|
2. दक्षेश के सदस्य देशों में मतभेद अधिक है| कहीं सीमा विवाद तो कहीं नदी जल बंटवारे को लेकर मनमुटाव बना रहता है| दक्षेश को अपेक्षित सफलता ना मिलने का यही कारण है
दक्षेश को मजबूत बनाने के निम्नलिखित सुझाव-
1. दक्षेश की सफलता उसके सदस्य देशों की राजनीतिक सहमति पर आधारित है| सभी देशों को आपसी मतभेद भुलाकर दक्षेश को मजबूत बनाना चाहिए ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस संगठन को महत्व मिले और उसकी आवाज सुनी जाए| आपसी मतभेदों की छाया दक्षेस के कार्यक्रम क्रियान्वयन पर नहीं पढ़नी चाहिए|
2. दक्षेस के मंच पर छोटे देश या बड़े देश का क भेदभाव नहीं होना चाहिए|
3. द्विपक्षीय मुद्दों को दक्षेस से दूर रखना चाहिए|
4. अपने क्षेत्र का सबसे बड़ा और ताकतवर देश होने के कारण भारत को अपने पड़ोसियों की यथा अनुसार सहायता करनी चाहिए| दक्षेस की मजबूती ही इस क्षेत्र की मजबूती है|
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Answer:
दक्षेश की कुछ निम्नलिखित सीमाएं हैं-
1. कुछ छोटे देश मानते हैं कि ' साफ्टा' की आड़ में भारत उनके बाजार में सेंध मारकर व्यवसायिक मौजूदगी के जरिए उनके समाज और राजनीति पर असर डालना चाहता है|
2. दक्षेश के सदस्य देशों में मतभेद अधिक है| कहीं सीमा विवाद तो कहीं नदी जल बंटवारे को लेकर मनमुटाव बना रहता है| दक्षेश को अपेक्षित सफलता ना मिलने का यही कारण है
दक्षेश को मजबूत बनाने के निम्नलिखित सुझाव-
1. दक्षेश की सफलता उसके सदस्य देशों की राजनीतिक सहमति पर आधारित है| सभी देशों को आपसी मतभेद भुलाकर दक्षेश को मजबूत बनाना चाहिए ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस संगठन को महत्व मिले और उसकी आवाज सुनी जाए| आपसी मतभेदों की छाया दक्षेस के कार्यक्रम क्रियान्वयन पर नहीं पढ़नी चाहिए|
2. दक्षेस के मंच पर छोटे देश या बड़े देश का क भेदभाव नहीं होना चाहिए|
3. द्विपक्षीय मुद्दों को दक्षेस से दूर रखना चाहिए|
4. अपने क्षेत्र का सबसे बड़ा और ताकतवर देश होने के कारण भारत को अपने पड़ोसियों की यथा अनुसार सहायता करनी चाहिए| दक्षेस की मजबूती ही इस क्षेत्र की मजबूती है|