Social Sciences, asked by anitakumarijhajha5, 7 months ago

दर्शन और धर्म के बीच के संबंध की विवेचना करें​

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Answered by shisinghkha053
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Explanation:

दर्शन और धर्म में समानता

धर्म मनुष्य को मनुष्यता का बोध कराती है, तथा अपनी वास्तविक शक्ति आध्यात्मिकता से प्राप्त करती है। धर्म और दर्शन में घनिष्ठ संबंध है, दोनों में समानता के अनेक तत्व हैं, जिन्हें निम्नलिखित आधारों पर समझा जा सकता हैं।

1 दर्शन और धर्म दोनों ही परमसत्ता के सत्य को उद्धारित करना चाहते हैं। दोनो ही के अध्ययन क्षेत्र के अंतर्गत ईश्वर तथा आत्मा का अस्तित्व, आत्मा की अमरता, ईश्वर की सर्वशक्तिमानता, पुनर्जन्म, मानव जीवन का लक्ष्य आदि विषय शामिल हैं। इस तरह दर्शन तथा धर्म के अध्ययन क्षेत्र की विषय वस्तु एक जैसी हैं।

2 दर्शन तथा धर्म दोनों ही सृष्टि के मूल तत्व की खोज करते हैं, जिस मूल तत्व से समस्त सृष्टि की उत्पत्ति हुई है।

3 धर्म तथा दर्शन दोनों ही मनुष्य के जीवन में नैतिकता, आस्था तथा मूल्यों की स्थापना पर जोर देते हैं, ताकि मनुष्य जीवन श्रेष्ठता की ओर अग्रसर हो।

4 दर्शन तथा धर्म दोनों ही मनुष्य जीवन की युक्ति की परिकल्पना प्रस्तुत करते हैं।

धर्म और दर्शन के बीच परस्पर पूरक संबंध और असमानताएँ

धर्म और दर्शन के बीच असमानताएं अध्ययन विधि तथा समस्याओं के निराकरण हेतु अपनाई गई विधियों में भिन्नता के परिणामस्वरूप होती हैं। दर्शन की कई अन्य समस्याओं का धर्म से कोई संबंध नहीं हैं। धर्म और दर्शन के बीच असमानताओं को निम्नलिखित आधारों पर समझा जा सकता है।

1 धर्म और दर्शन दोनों ही परमतत्व अथवा मूल तत्व के स्वरूप का अध्ययन करते हैं, मूल तत्व से ही सृष्टि की उत्पत्ति माना जाता है। धर्म आध्यात्मप्रधान होने के कारण इस मूल तत्व को प्रायः ईश्वर के रूप में वर्णित करता है, जबकि दर्शन ने परमतत्व के स्वरूप को भिन्न भिन्न माना है। कुछ दार्शनिकों के अनुसार मूल तत्व भौतिक स्वरूप में होता है, अर्थात भौतिक तत्व है, जबकि अन्य दार्शनिकों के अनुसार मूल तत्व आध्यात्मिक स्वरूप का होता है ! भौतिकशास्त्री दार्शनिक ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते। आध्यात्मिकतावादी दार्शनिक भी ईश्वर के अस्तित्व तथा स्वरूप के संबंध में भिन्न भिन्न मत व्यक्त करते हैं।

2 ज्ञान प्राप्ति के स्त्रोत के संबंध में भी धर्म तथा दर्शन में असमानता है। दर्शन की प्रमुख समस्या है ज्ञानमीमांसा, अर्थात ज्ञान प्राप्ति के स्त्रोत के रूप में बुद्धि द्वारा प्राप्त ज्ञान, श्रेष्ठ है, अथवा इन्द्रियों द्वारा प्राप्त ज्ञान, यह विवाद का विषय है। इससे दर्शन में क्रमश: बुद्धिवादी (Rationalism) विचारधारा तथा अनुभववादी (Empiricism) विचारधारा का सुत्रपात हुआ। धर्म के विषय में इस तरह की समस्याएँ नहीं हैं।

3 दर्शन से जुड़ी हुई समस्याएँ सैद्धान्तिक हैं, इन समस्याओं के समाधान के लिए दर्शन आगमन-निगमन और तर्क प्रणाली जैसे वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग करता है जबकि धर्म से जुड़ी हुई समस्याएँ व्यावहारिक होती हैं, श्रद्धा विष्वास की भावना से ही इन व्यावहारिक समस्याओं का समाधान खोजा जाता है।

4 दर्शन तथा धर्म दोनों ही मनुष्य जीवन को नैतिकता तथा श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों से परिपूर्ण बनाना चाहते हैं, इस हेतु दर्शन बौद्धिक चिंतन प्रणाली को महत्व देता है, जबकि धर्म, आनुष्ठानिक क्रियाओं तथा धार्मिक कर्मकांडो को प्राथमिकता देता है।

5 दर्शन का दृष्टिकोण बौद्धिक, तार्किक तथा तटस्थ होता है, जबकि धर्म भावना प्रधान दृष्टिकोणों से संचालित होता है।

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