दरअसल हम अपनी समस्याओ की चचा बहत बढा- चढाकर करते हैं। समस्याए आन पर हम दसरों की सहानभतत चाहत ह लेककन सहानुभूतत या दया से कोई समस्या हल नह ं होती। हम मुश्ककलों का रोना रोते हैं लेककन कभी समाधान के बारे में नह ं सोचते। दरअसल हम हतियार डालत हए यह मान लेते हैं, जैसे बड भार मुसीबत आ गई हो। कदन-रात इसी मुसीबत के बारे में सोचते रहते हैं। इस तरह समस्या पूर तरह हमारे कदलो-कदमाग पर छा जाती है। इस पूर प्रकिया में स्वयं द्वारा ककए गए कायों का मूलयांकन करना भूल जाते हैं। यकद ऐसा करें, तो हो सकता है कक ऐसी श्स्ितत से बाहर तनकलने में मदद तमल जाए। पररश्स्िततयों का ठीक-ठीक मलयाकन करक आप आसानी स समाधान तक पहच सकते हैं। ककसी भी समस्या का हल उसकी जड में होता है। यकद आप गलत नह ं हैं तो हताशा से उबरने के तलए साहस से काम लीश्जए। सफलता की सडक पर चलन क दौरान कवल एक पत्िर का टकडा उठा कर नह ं फेंकते बश्लक एक तरह से पहाड तोडने का काम करते हैं। क) ककस उपाय से हमार समस्या सुलझ सकती है? ख) ‘हतियार डालना' मुहावरे का क्या अिा है? ग) हमें साहस की आवकयकता ककस तलए पडती है? घ) समस्याओं का हल क्या नह ं है? ङ) गद्ांश का उतचत शीर्ाक द श्जए।
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1) हाँ, ककस उपाय से हमार समस्या सुलझ सकती है
2) हार मान लेना
3) nahi aata hai sorry for this
4)
5) समस्या का हल
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