दरबारियों ने दारा के खिलाफ शाह से क्या कहा
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फकीर को पूछताछ के लिए बुलाया गया. औरंगज़ेब ने उससे दारा की जीत की भविष्यवाणी के बारे में पूछा जो एक बार सरमद ने की थी. उस भविष्यवाणी की याद दिलाई उसे और पूछा- ‘तुमने जो कहा था हुआ उसके उलट. अब क्या कहते हो?’ सरमद ने जवाब दिया- ‘मैंने ये नहीं कहा था कि वो इस दुनिया का शहंशाह बनेगा। मैंने तो आने वाली दुनिया के बारे बात की थी. वो उस दुनिया का शहंशाह होगा.’ सरमद को अपनी वफादारी दिखाने के लिए कलमा पढ़ने के लिए कहा गया- ‘ला इलाही इलल्लाह, मुहम्मद उर रसूलल्लाह’ मतलब अल्लाह के अलावा कोई दूसरा ईश्वर नहीं है. और मोहम्मद उस ईश्वर के दूत हैं. लेकिन फकीर ने पूरा कलाम नहीं पढ़ा और सिर्फ इतना कहा- ‘ला इलाह’ मतलब ‘ईश्वर नहीं है’. काज़ी ने लोगों को चीख-चीख कर ये बात बताई – ‘देखो, तुम्हारा ये फकीर क्या कहता है. ये ईश्वर को नहीं मानता. देख लो ये कैसा शैतान है.’ सरमद को सड़कों-गलियों में घसीटते हुए ले जाया गया और उसके सिर को धड़ से अलग कर दिया गया.
कहा जाता है कि धरती से जाते वक़्त सरमद की देह ने अपने कटे हुए सिर को हाथ में ले लिया और नाचने लगा. फिर नाचते हुए ही उसने पूरा कलमा पढ़ा. उसने अपने अल्लाह को पा लिया था. जैसे ही वो जामा मस्जिद में जाने को हुआ हरे-भरे शाह की मजार से एक आवाज आई. उसे पुकारा था किसी ने. अब सरमद को उसका ईश्वर मिल गया था. सरमद अपना कटा सिर लेकर शाह की मजार की तरफ चल दि
या. वहीं मजार के पास वो गिर गया और वहीं दफन भी हो गया. अपने हाथों में अपना ही सिर लेकर नाचते-नाचते पूरा कलमा पढ़ने की बात बाद में जोड़ी हुई बात है. क्योंकि लोग अपने प्रिय संत की कल्पना बिना कलमे के कर ही नहीं पाते शायद. वो तो ये भी कल्पना नहीं कर सकते कि उनके इस संत ने ईश्वर के अस्तित्व पर सवाल खड़ा किया है. सरमद का अपने हाथों में सिर लेकर नाचना हिन्दू धर्म की देवी काली की याद दिलाता है. दो धर्मों के मिथकों का इस तरह मिलना सुखद संयोग है. औरंगज़ेब के दरबारियों ने सरमद पर दो और आरोप भी लगाए थे. जिसमें से एक आरोप था कि वो हमेशा नंगे घूमा
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दरबारियों ने दारा के खिलाफ़ शाह के कान भरने के लिए उनसे यह कहा कि द्वारा जब दौरे पर जाता है तो अपने साथ दूसरे घोड़े पर एक बक्सा भी रखता है जिसमें वे मासूम जनता से लूटा हुआ धन रखता है। दारा आपके दिए हु अधिकारों का अनुचित लाभ उठा रहा है।