दस महापुरुषों के वचन
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Explanation:
महापुरुषों के अनमोल वचन
ब्रह्माज्ञानी को स्वर्ग तृण है, शूर को जीवन तृण है, जिसने इंद्रियों को वश में किया उसको स्त्री तृण-तुल्य जान पड़ती है, निस्पृह को जगत तृण है
-चाणक्य
सबसे उत्तम तीर्थ अपना मन है जो विशेष रूप से शुद्ध किया हुआ हो
-स्वामी शंकराचार्य
कर्म, ज्ञान और भक्ति का संगम ही जीवन का तीर्थ राज है |
-दीनानाथ दिनेश
तपस्या धर्म का पहला और आखिरी कदम है |
-महात्मा गांधी
अपनी पीड़ा सह लेना और दूसरे जीवों को पीड़ा न पहुंचाना, यही तपस्या का स्वरूप है|
-संत तिरुवल्लुवर
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सत्याग्रह बल से नहीं ,हिंशा के त्याग से होता है |
-महात्मा गाँधी
लोग चाहे मुट्ठी भर हों, लेकिन संकल्पवान हों, अपने लक्ष्य में दृढ आस्था हो, वे इतिहास को भी बदल सकते हैं
-महात्मा गाँधी
हर आदमी कहता है की मैं अच्छा हूँ, लेकिन लोग क्या मानते हैं यह महत्वपूर्ण है |
- अज्ञात
खुशियों को दामन में भरने पर वह थोड़ी सी लगती हैं, लेकिन यदि उन्हें बांटा जाये तो वे और ज्यादा बड़ी नजर आती हैं |
-अज्ञात
उठो जागो और लक्ष्य तक मत रुको|
-स्वामी विवेकानंद
सत्य से बड़ा तो इश्वर भी नहीं |
- महात्मा गाँधी
दो की दोस्ती में एक का धर्य जरुरी है |
-अज्ञात
किसी को माफ़ करना कमजोरी नहीं वरन सामर्थ्यवान ही ऐसा कर सकता है |
-महात्मा गाँधी
मेहनत करने से दरिद्रता नहीं रहती, धर्म करने से पाप नहीं रहता, मौन रहने से कलह नहीं होता |
- चाणक्य
क्रोध ऐसी आँधी है जो विवेक को नष्ट कर देती है|
- अज्ञात
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मुठ्ठी भर संकल्पवान लोग जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं|
- महात्मा गांधी
हज़ार योद्धाओं पर विजय पाना आसान है, लेकिन जो अपने ऊपर विजय पाता है वही सच्चा विजयी है|
- गौतम बुद्ध
मन एक भीरु शत्रु है जो सदैव पीठ के पीछे से वार करता है|
- प्रेमचंद
अपने को संकट में डाल कर कार्य संपन्न करने वालों की विजय होती है, कायरों की नहीं|
- जवाहरलाल नेहरू
विश्वास वह पक्षी है जो प्रभात के पूर्व अंधकार में ही प्रकाश का अनुभव करता है और गाने लगता है|
- रवींद्रनाथ ठाकुर
ऐसे देश को छोड़ देना चाहिए जहाँ धन तो है लेकिन सम्मान नहीं|
-विनोबा
अछे सब्दों के प्रयोग से बुरे लोगों का भी दिल जीता जा सकता है|
- भगवान बुद्ध
मनुष्य का सबसे बड़ा यदि कोई शत्रु है तो वह है उसका अज्ञान|
- चाणक्य
इच्छाएं ही सब दुखों का मूल कारण है|
- भगवान बुद्ध
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यदि मार्ग काँटों भरा हो, और आप नंगे पांव हो तो रास्ता बदल लेना चाहिए|
- चाणक्य
वाणी के बजाय कार्य से दिए गए उदहारण कहीं ज्यादा प्रभावी होते हैं.|
-अज्ञात
मनुष्य का पतन कार्य की अधिकता से नहीं वरन कार्य की अनियमतता से होता है |
- अज्ञात
कायर आदमी अपनी मौत से पहले न जाने कितनी बार मरता है |
- अज्ञात
जो सभी का मित्र होता है वो किसी का मित्र नहीं होता |
- ओशो
क्रोध में मनुष्य अपने मन की बात कहने के बजाय दूसरों के ह्रदय को ज्यादा दुखाता है।
-मुंसी प्रेमचंद
सारा हिन्दुस्तान गुलामी में घिरा हुआ नहीं है। जिन्होंने पश्चिमी शिक्षा पाई है और जो उसके पाश में फँस गए हैं, वे ही गुलामी में घिरे हुए हैं।
-महात्मा गाँधी
मानव जीवन धूल की तरह होता है, हम इसे रो-धोकर इसे कीचड़ बना देते हैं।
-बकुल वैद्य
सौंदर्य और विलास के आवरण में महत्त्वाकांक्षा उसी प्रकार पोषित होती है जैसे म्यान में तलवार।
-रामकुमार वर्मा
जिस प्रकार बिना जल के धान नहीं उगता उसी प्रकार बिना विनय के प्राप्त की गई विद्या फलदायी नहीं होती।
-भगवान महावी
अकर्मण्यता के जीवन से यशस्वी जीवन और यशस्वी मृत्यु श्रेष्ठ होती है।
-चंद्रशेखर वेंकट रमण
सत्य से कीर्ति प्राप्त की जाती है और सहयोग से मित्र बनाए जाते हैं।
-कौटिल्य अर्थशास्त्र
जिस प्रकार जल कमल के पत्ते पर नहीं ठहरता है, उसी प्रकार मुक्त आत्मा के कर्म उससे नहीं चिपकते हैं।
--छांदोग्य उपनिषद
कामनाएँ समुद्र की भाँति अतृप्त हैं। पूर्ति का प्रयास करने पर उनका कोलाहल और बढ़ता है।
-स्वामी विवेकानंद-
जैसे सूर्य आकाश में छुप कर नहीं विचर सकता उसी प्रकार महापुरुष भी संसार में गुप्त नहीं रह सकते।
-व्यास
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पुरुषार्थ से दरिद्रता का नाश होता है, जप से पाप दूर होता है, मौन से कलह की उत्पत्ति नहीं होती और सजगता से भय नहीं होता।
- चाणक्य
शासन के समर्थक को जनता पसंद नहीं करती और जनता के पक्षपाती को शासन। इन दोनो का प्रिय कार्यकर्ता दुर्लभ है।
- पंचतंत्र
ख्याति नदी की भाँति अपने उद्गम स्थल पर क्षीण ही रहती है किंदु दूर जाकर विस्तृत हो जाती है।
-भवभूति
कुमंत्रणा से राजा का, कुसंगति से साधु का, अत्यधिक दुलार से पुत्र का और अविद्या से ब्राह्मण का नाश होता है।
- विदुर
सारा जगत स्वतंत्रता के लिए लालायित रहता है फिर भी प्रत्येक जीव अपने बंधनो को प्यार करता है।
- श्री अरविंद
बुद्धि के सिवाय विचार प्रचार का कोई दूसरा शस्त्र नहीं है, क्योंकि ज्ञान ही अन्याय को मिटा सकता है।
- शंकराचार्य
खुद के लिये जीनेवाले की ओर कोई ध्यान नहीं देता पर जब आप दूसरों के लिये जीना सीख लेते हैं तो वे आपके लिये जीते हैं।
- श्री परमहंस योगानंद
सबच्चों को पालना, उन्हें अच्छे व्यवहार की शिक्षा देना भी सेवाकार्य है, क्योंकि यह उनका जीवन सुखी बनाता है।
-स्वामी राम सुखदास