दशमः पाठः<br />कृषिका: कर्मवीरा:<br />सूर्यस्तपतु मेघा: वा वर्षन्तु विपुल जलम्।<br />कृषिका कृषिको नित्यं शीतकालेऽपि कर्मठा ।।।<br />ग्रीष्म शरीर सस्वेदं शीते कम्पमय सदा।<br />उकर्मठो<br />पसस्वेदम्<br />उपदत्राणे<br />हलन च कुदालेन तौ तु क्षेत्राणि कर्षत: ।।2।।<br />पादयोन पदत्राणे शरीरे वसनानि नो।<br />निर्धनं जीवनं कष्टं सुखं दूरे हि तिष्ठति ।।3।।<br />6वसनानि<br />7 जीर्णम्<br />वारयितुम्<br />१क्षमम्<br />(०सस्यपूर्णानि<br />// धरित्री<br />गृह जीर्ण न वर्षासु वृष्टिं वारयितुं क्षमम्।<br />तथापि कर्मवीरत्वं कृषिकाणां न नश्यति ।।4।।<br />कण्टकाव<br />13क्षुधातृषा<br />तयो : श्रमेण क्षेत्राणि सस्यपूर्णानि सर्वदा।<br />धरित्री सरसा जाता या शुष्का कण्टकावृता ।।5।।<br />शाकमन्नं फलं दुग्धं दत्त्वा सर्वेभ्य एव तौ।<br />क्षुधा-तृषाकुलौ नित्यं विचित्रौ जन-पालकौ ।।6।। meaning in hindi
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शाकमन्नम फलम दुग्धं दत्वा सर्वेभ्यः एवं तौ
क्षुधा त्रिशकुलौ नित्यं विचित्रुओ जान पलको
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