India Languages, asked by ar8633, 5 months ago

दशरथ को ललकार ना सके राम को कह ना सके कि वनवास​

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Answered by vedantpatil2067
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सुपौल। राघोपुर प्रखंड के बायसी में आयोजित महाविष्णु यज्ञ में शुक्रवार की संध्या सत्र में प्रख्यात रामायणी मानस मधुकरजी ने अपने अमृतमय वाणी से राम वनवास और भरत मिलाप के प्रसंग का बड़ा ही मार्मिक प्रवचन दिया। अपनी सशक्त वाणी से उन्होंने श्रद्धालुओं को भावभिवोर कर दिया। अयोध्या में राम के राजतिलक की तैयारी, कैकेयी के कोप भवन में प्रवेश, राजा दशरथ द्वारा उनकी मनुहार में तीन वरदान देते हुए श्रीराम को वनवास की आज्ञा देना, सीता, लक्ष्मण सहित राम का वन गमन और चित्रकूट में भरत मिलाप तक के बहाने रामायणकालीन पारिवारिक, सामाजिक एवं राजनैतिक मूल्यों के प्रति मानस मधुकर ने जागरुकता भरे संदेश दिए। उन्होंने कथा आरंभ करते हुए कहा कि राम के वन-गमन एवं कोपभवन के घटनाक्रम की जानकारी बाहर किसी को नहीं थी। कैकेयी अपनी जिद पर अड़ी हुईं थी। राजा दशरथ उन्हें समझा रहे थे। राम के निवास के बाहर भारी भीड़ थी। लक्ष्मण भी वहीं थे। महल में पहुंचकर राम ने पिता को प्रणाम किया। फिर पिता से पूछा, क्या मुझसे कोई अपराध हुआ है। कोई कुछ बोलता क्यों नहीं। आप ही बताइए, माते। इस पर कैकयी बोली महाराज दशरथ ने मुझे एक बार दो वरदान दिए थे। मैंने कल रात वही दोनों वर मांगे, जिससे वे पीछे हट रहे हैं। यह शास्त्र-सम्मत नहीं है। रघुकुल की नीति के विरुद्ध है। कैकेयी ने बोलना जारी रखा, मैं चाहती हूं कि राज्याभिषेक भरत का हो और तुम चौदह वर्ष वन में रहो। महाराज यही बात तुमसे नहीं कह पा रहे थे। राम संयत रहे। उन्होंने ²ढ़ता से कहा, पिता का वचन अवश्य पूरा होगा।भरत को राजगद्दी दी जाए। मैं आज ही वन चला जाऊंगा। राम की शांत और सधी हुई वाणी सुनकर कैकेयी के चेहरे पर प्रसन्नता छा गई। उनकी मनोकामना पूर्ण हुई। राजा दशरथ चुपचाप सब कुछ देख रहे थे। इस मार्मिक कथा को मानस मधुकर ने जब रामायण की पांति पढ़-पढ़कर सुनाया तो उपस्थित भक्तों की आंखों भी भर आई। राम कैकेयी व दशरथ संवाद के बाद मधुकरजी ने आगे कहा कि जैसे ही राम महल से निकले माता कौशल्या को कैकेयी-भवन का विवरण दिया और अपना निर्णय

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