दवद्यणर्थी िीवि को मणिव िीवि की रीढ़ की हड्डी कहें तो कोई अदतशयोक्त्तत्त िहीं होगी। दवद्यणर्थी
कणल मे बणलक में िो संस्कणर पड़ िणते हैं िीवि-भर वही संस्कणर अदमट रहते हैं। इसीदलए यही
कणल आधणरदशलण कहण गयण है। यदद यह िींव दृढ बि िणती है तो िीवि सुदृढ़ और सुखी बि िणतण
है। यदद इस कणल में बणलक कष्ट सहि कर लेतण है तो उसकण स्वणस्थ्य सुंदर बितण है। यदद मि
लगणकर अध्ययि कर लेतण है तो उसे ज्ञणि दमलतण है, उसकण मणिदसक दवकणस होतण है। दिस वृक्ष
को प्रणरंभ से सुंदर दसंचि और खणद दमल िणती है, वह पुक्त्ित एवं पल्लदवत होकर संसणर को सौरभ
देिे लगतण है। इसी प्रकणर दवद्यणर्थी कणल में िो बणलक श्रम, अिुशणसि, समय एवं दियमि के सणाँचे में
ढल िणतण है, वह आदशा दवद्यणर्थी बिकर सभ्य िणगररक बि िणतण है। सभ्य िणगररक के दलए दिि-
दिि गुर्ों की आवश्यकतण है उि गुर्ों के दलए दवद्यणर्थी कणल ही तो सुन्दर पणठशणलण है। यहणाँ पर
अपिे सणदर्थयों के बीच रह कर वे सभी गुर् आ िणिे आवश्यक हैं, दििकी दक दवद्यणर्थी को अपिे
िीवि में आवश्यकतण होती है।
गद्यणंश में ‘वृक्ष’ दकसे कहण गयण है ?
I. पेड़ को
II. दवद्यणर्थी को
III. िीवि को
IV. समय को
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samay ko ya ped ko
please mark as brilliant
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