History, asked by pallavi814150, 3 months ago

दयानंद सरस्वती ने शिक्षा पर विशेष जोर दिया kayon​

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Answered by itzPriyanka
2

Answer:

स्वामी दयानंद सरस्वती शिक्षा को एक प्रक्रिया मानते हैं। उनके अनुसार यह प्रक्रिया गर्भावस्था से प्रारम्भ होती है और जीवन-पर्यन्त चलती रहती है। उन्होंने शिक्षा को आन्तरिक शुद्धि के रूप में माना है। यह शुद्धि आचरण, विचार तथा कर्म में प्रदर्शित होती है

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Answered by Atlas99
26

☀︎︎ ANSWER ☀︎︎

स्वामी दयानंद सरस्वती शिक्षा को एक प्रक्रिया मानते हैं। उनके अनुसार यह प्रक्रिया गर्भावस्था से प्रारम्भ होती है और जीवन-पर्यन्त चलती रहती है। उन्होंने शिक्षा को आन्तरिक शुद्धि के रूप में माना है। यह शुद्धि आचरण, विचार तथा कर्म में प्रदर्शित होती है। एक स्थान पर स्वामी जी ने शिक्षा के अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि ‘शिक्षा सत्य आचरण की योग्यता है।’ इस योग्यता की प्राप्ति के लिए शुभ गुणों को प्राप्त करना परमावश्यक है। इस सम्बन्ध में स्वयं स्वामी दयानंद ने लिखा है- ‘‘शिक्षा वह है, जिससे मनुष्य-विद्या आदि शुभ गुणों को प्राप्त करें और अविद्या आदि दोषों को त्याग कर सदैव आनन्दमय जीवन व्यतीत कर सके।’’

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