History, asked by shreyavj1818, 1 year ago

The core of the middle class in bengal in the 19th century was

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Answered by anand8834
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शासन के विभिन्न अंगों; जैसे विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका; के बीच सत्ता का बँटवारा होता है। इस तरह के बँटवारे को क्षैतिज बँटवारा कहा जा सकता है क्योंकि इसमें सत्ता के विभिन्न अंग एक ही स्तर पर रहकर अपनी अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हैं।

इस तरह के बँटवारे से यह सुनिश्चित हो जाता है कि शासन के किसी भी एक अंग को असीमित शक्ति न मिले। इससे विभिन्न संस्थानों में शक्ति का संतुलन बरकरार रहता है। कार्यपालिका सत्ता का उपयोग करती है लेकिन यह संसद के अधीन रहती है। संसद के पास कानून बनाने का अधिकार होता है लेकिन इसे जनता को जवाब देना होता है। न्यायपालिका स्वतंत्र होती है और इसका काम होता है यह देखना कि विधायिका और कार्यपालिका द्वारा सभी नियमों का सही पालन हो रहा है।

विभिन्न स्तरों पर सत्ता का बँटवारा:

सत्ता का बँटवारा सरकार के विभिन्न स्तरों के बीच होता है। सामन्यतया पूरे राष्ट्र की जवाबदेही केंद्रीय सरकार पर होती है और गणराज्य के विभिन्न इकाइयों की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर होती है। केंद्र सरकार और राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में पड़ने वाले विषयों के बीच एक निश्चित सीमारेखा होती है। लेकिन कुछ विषय ऐसे हैं जो साझा लिस्ट में होते हैं और जिनपर केंद्र और राज्य सरकारों दोनों का अधिकार होता है।

सामाजिक समूहों के बीच सत्ता का बँटवारा:

समाज के विभिन्न समूहों के बीच भी सत्ता का बँटवारा होता है। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में अनेक सामाजिक, भाषाई और जातीय समूह हैं जिनके बीच सत्ता का बँटवारा होता है। उदाहरण के लिये अल्पसंख्यक समुदाय, अन्य पिछड़ी जातियों, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को आरक्षण दिया जाता है ताकि सरकारी तंत्र में उनका सही प्रतिनिधित्व हो सके।

विभिन्न प्रकार के दबाव समूहों के बीच सत्ता का बँटवारा:

विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के बीच के सत्ता के बँटवारे को लोग आसानी से समझ पाते हैं। सामान्यतया सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी या राजनैतिक गठबंधन को शासन करने का मौका मिलता है। अन्य पार्टियाँ विपक्ष का निर्माण करती हैं। हालाँकि विपक्ष सत्ता में नहीं होता है लेकिन इसकी यह जिम्मेदारी होती है कि इस बात को सुनिश्चित करे कि सत्ताधारी पार्टी लोगों की इच्छा के अनुरूप काम कर रही है।

राजनैतिक पार्टियों के बीच सत्ता की साझेदारी का एक और उदाहरण है विभिन्न राजनैतिक पार्टियों के लोग विभिन्न कमिटियों के अध्यक्ष बनते हैं।

दबाव समूहों को भी सत्ता में साझेदारी मिलती है। उदाहरण के लिये एसोचैम, छात्र संगठन, आदि को भी सत्ता में भागीदारी मिलती है। इन संगठनों के प्रतिनिधि कई नीति निर्धारक अंगों के भाग बनते हैं और इस तरह सत्ता में भागीदारी पाते हैं।


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