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टॉग से ज्यादा फिक्र मुझे उन लोगों की हुई जो हमदर्दी जताने मुझसे मिलने आएँगे । ये मिलने-
जुलने वाले कई बार इतने अधिक आते हैं और कभी-कभी इतना परेशान करते हैं कि मरीज का
आराम हराम हो जाता है, जिसकी मरीज को खास जरूरत होती है । जनरल वार्ड का तो एक नियम
होता है कि आप मरीज को एक निश्चित समय पर आकर ही तकलीफ दे सकते हैं किंतु प्राइवेट वार्ड
यह तो एक खुला निमंत्रण है कि "हे मेरे परिचितो, रिश्तेदारो, मित्रो ! आओ, जब जी चाहे आओ,
चाहे जितनी देर रुको, समय का कोई बंधन नहीं | अपने सारे बदले लेने का यही वक्त है।"बदले का
बदला और हमदर्दी की हमदर्दी । मिलने वालों का खयाल आते ही मुझे लगा मेरी दूसरी टाँग भी टूट
गई।
मुझसे मिलने के लिए सबसे पहले वे लोग आए जिनकी टाँग या कुछ और टूटने पर मैं कभी
उनसे मिलने गया था, मानो वे इसी दिन का इंतजार कर रहे थे कि कब मेरी टॉग टूटे और कब वे
अपना एहसान चुकाएँ । इनकी हमदर्दी में यह बात खास छिपी रहती है कि देख बेटा, वक्त सब पर
आता है।
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