the talktetive barber story in hindi
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परिचय
समाज का कार्य हजाम के बिना नहीं चल सकता। जब चेहरे पर दाढी इस प्रकार बढ जाती है कि यह जंगल की तरह दीख पडती है और सिर पर बाल इस प्रकार बढ जाते हैं कि वे पक्षियों के खोतों की तरह दीख पडते हैं, तब हजाम को उत्सुकतापूर्वक खोजा जाता है। गांवों में हजाम अपने कार्य के लिए कुछ परिवारों को निश्चित करके रखते हैं। नियत तिथियों पर वे इन परिवारों के यहां जाते हैं और परिवार के उन सदस्यों की हजामत बनाते हैं जिन्हें हजामत बनवाने की आवश्यकता होती है। शहरों में हजामों का कोई निर्धारित ग्राहक नहीं होता।
उसके औजार
हजाम आसानी से पहचाना जाता है। वह अपने हाथ में एक बक्सा लिए इधर-उधर गली में घूमते दिखाई पड सकता है। बक्से में हजामत बनाने के और्जार और सामान रहते हैं। औजार बहुत साधारण रहते हैं। उसमें एक या दो कैंची, एक या दो अस्तुरा, हजामत बनाने का ब्रश, हजामत बनाने का साबुन, एक या दो कंघी और एक या दो दर्पण रहते हैं। आधुनिक हजाम बाल काटने की मशीन, स्त्रो या क्रीम की एक शीशी, कुछ फिटकिरी, तौलिया और बाल झाडने का एक ब्रश भी रखते हैं।
सैलून (दूकान)
शहरों और नगरों में हजामों द्वारा घर-घर जाने की पद्धति कम हो रही है। नापितों ने बाल काटने एवं दाढी बनाने के लिए दूकानें खोल दी है। इन दूकानों को ‘सैलून’ कहते है। लोग इन सैलूनों में जाते है और अपनी दाढी बनवाते हैं तथा आराम से बाल को सैंवरव लेते हैं। सैलून में हजामत बनाना आनन्द की बात है। वहां लोग दिन में सभी समय यहां तक कि रात्रि में भी हजामत बनवा लेते हैं।
हिन्दू समाज में उसका महत्त्व
भारतवर्ष में हजाम का समाज में महत्त्वपूर्ण स्थान है। दाढी बनाने एवं बाल काटने के अलावा वह अन्य कार्य भी करता है। हिन्दू परिवार में हजाम के बिना कोई उत्सव नहीं हो सकता। सभी उत्सवों एवं धार्मिक विधियों के अवसर पर हजाम और परिवार के पुरोहित की उपस्थिति आवश्यक है।
उपसंहार
पुराने समय में हजामत बनाने के लिए सप्ताह में कम-से-कम दो या तीन बार हजाम की जरुरत पडती थी। लेकिन, ‘सेफ्टी रेजर’ के आविष्कार ने बहुत दूर तक हजाम की आमदनी को कम कर दिया है। अब बहुत बडी संख्या में लोग सेफ्टी रेजर की सहायता से स्वयं अपने हाथों से हजामत बना लेते है। बहुत बढे हुए बालों को काटने के समय ही हजाम की आवश्यकता पडती है। हजामों ने अपने को नई स्थिति के अनुरुप बना लिया है और वे अभी भी एक वर्ग के रुप में जीवित है।
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