The.waitress saved the actreey and the authoress
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Answer:
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Explanation:
good morning and have a nice day.
पुस्तकों का महत्त्व
ज्ञान एवं मनोरंजन का भंडार
सच्चा मनुष्य बनने में सहायक
मनुष्य ज्ञान पिपासु एवं जिज्ञासु प्राणी है। उसकी ज्ञान पियासा और जिज्ञासा को शांत करने का सर्वोत्तम साधन पुस्तकें हैं। पुस्तकों में विविध प्रकार का ज्ञान भरा होता है जिससे मनुष्य अच्छा इनसान बनता है तथा उन्नति करता है। इस प्रकार पुस्तकों का बहुत महत्त्व है। पुस्तकें दुविधाग्रस्त व्यक्ति का मार्गदर्शन करती हैं। इससे दुविधाओं से मुक्ति मिलती है। पुस्तकें ज्ञान एवं मनोरंजन का भंडार होती हैं। इनसे व्यक्ति ज्ञानवान बनता है। जब वह कामकाज से थक जाता है तो पुस्तकों से अपना मनोरंजन करता है और थकानमुक्त महसूस करता है।
पुस्तकें हमारे सच्चे विवेकशील मित्र की तरह होती हैं। वे हमें सही-गलत, नैतिक-अनैतिक, ज्ञान-अज्ञान तथा न्याय-अन्याय में अंतर करना सिखाती हैं। पुस्तकें मानसिक शांति प्रदान करती हैं तथा कर्म का संदेश देती हैं। रामचरितमानस, महाभारत श्रीमद् भागवत गीता, कामायनी, निर्मला, साकेत आदि ऐसी ही पुस्तकें हैं। पुस्तकें हमें धर्म की ओर मोड़कर नैतिकता का पाठ पढ़ाती हैं। हमें पुस्तकें पढ़कर फेंकने के बजाय किसी व्यक्ति या पुस्तकालय को दे देनी चाहिए।
औद्योगीकरण का पर्यावरण पर प्रभाव
संकेत बिंदु –
औद्योगीकरण एक आवश्यकता
वनों को क्षति
पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि
हमारा देश विकासशील राष्ट्र है। विकास के पथ पर बढ़ते हुए यहाँ अनेक औद्योगिक इकाइयों की स्थापना की गईं। स्वतंत्रता के बाद औद्योगीकरण की ओर विशेष ध्यान दिया गया। इससे हमारे देश में ही सुई से हवाई जहाज़ तक का निर्माण किया जाने लगा। इससे एक ओर लोगों को रोजगार मिला तो दूसरी ओर अर्थव्यवस्था मज़बूत हुई। इसके लिए पर्याप्त भूमि की आवश्यकता हुई जिसकी पूर्ति के लिए वनों को काटा गया।
इतना ही नहीं इन इकाइयों तक पहुँचने के लिए और इनमें बना माल लाने ले जाने के लिए सड़कें बनाईं गई जिससे हरे-भरे पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की गई। इसके अलावा इन औद्योगिक इकाइयों से निकले धुएँ से हवा में प्रदूषक तत्व मिले जिससे हवा जहरीली होती है। इनसे निकला अपशिष्ट पदार्थ और दूषित जल ने आस-पास के जल स्रोतों को प्रदूषित किया। इससे पानी ही नहीं मृदा प्रदूषण भी बढ़ा। इन इकाइयों में लगे उच्च क्षमता के मोटरों ने ध्वनि प्रदूषण को बढ़ावा दिया। औद्योगीकरण एक आवश्यकता है परंतु पर्यावरण का ध्यान रखकर इनकी स्थापना की जानी चाहिए।
संतोष-सबसे बड़ा धन
संकेत बिंदु –
भौतिकवाद का असर
मनुष्य की प्रवृत्ति ही है कि वह अधिक से अधिक सुख-सुविधाएँ पा लेना चाहता है। वह दूसरों के हिस्से की सुविधाएँ अपना बनाता जा रहा है। भौतिकवाद ने उसकी तृष्णा और भी बढ़ा दिया है। इससे व्यथित होकर वह सुख के पीछे भागता जा रहा है। वह मृगतृष्णा का शिकार हो रहा है। इसके बाद भी वह सुखी नहीं है, क्योंकि मनुष्य के मन में संतोष नामकी चीज़ ही नहीं बची है। कहा भी गया है- ‘गोधन, गजधन, बाजिधन और रतन धन खान। जब आए संतोष धन सब धन धूरि समान।।
अर्थात् संतोष रूपी धन के सामने सभी धन तुच्छ हैं। जो व्यक्ति संतोषी होता है वही सच्चा सुख पाता है। धन का लालच व्यक्ति को चैन से बैठने नहीं देता है। लालच के कारण व्यक्ति भूखे पशु की भाँति यहाँ-वहाँ घूमता है। इसके विपरीत यदि व्यक्ति के मन में संतोष की भावना आ गई तो वह प्रसन्नता की अनुभूति करता है। वह उतने ही पैसों की आवश्यकता महसूस करता है जितना कि उसकी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ज़रूरी होती है। ऐसे ही लोग कहते हैं-‘साईं इतना दीजिए, जामे कुटुंब समाय। मैं भी भूखा न रहूँ, साधु न भूखा जाय।’
संयुक्त परिवार के प्रति बदलती अवधारणा
संकेत बिंदु –
संयुक्त परिवार के लाभ
संयुक्त परिवार टूटने के कारण
हानियाँ
भारतीय संस्कृति में संयुक्त परिवार को महत्ता दी गई है। ऐसे परिवार में माता-पिता और बच्चों के अलावा दादा-दादी चाचा-चाची तथा ताऊ-ताई और उनके बच्चे साथ रहते हैं, खाते-पीते हैं और एक ही छत के नीचे रहते हैं। संयुक्त परिवार उस बड़े-बूढ़े बरगद के वृक्ष की भाँति होते हैं जो धूप-सरदी और वर्षा स्वयं सहकर दूसरों को सुख देते हैं। यही स्थिति घर के बुजुर्गों की होती है जो परिवार के अन्य सदस्यों को परेशानी से बचाते हैं। वे छोटे बच्चों को ज्ञानपूर्ण बातों एवं कहानियों से शिक्षा ही नहीं देते बल्कि उनका चरित्र निर्माण भी करते हैं। संयुक्त परिवार टूटने से अब दादी-नानी की कहानियाँ कागजों की बातें बनती जा रही हैं। संयुक्त परिवार टूटने का मुख्य कारण भौतिकवाद बढ़ती स्वार्थी प्रवृत्ति तथा पश्चिमी सभ्यता का असर है। इसके अलावा शिक्षित होकर नौकरी करने अन्य शहर में जाना वहीं बस जाना भी है। संयुक्त परिवार टूटने से अब बच्चों में नैतिक ज्ञान एवं संस्कार की कमी होती जा रही हैं। उन्हें अपनों का संरक्षण न मिल पाने से वे असुरक्षा तथा हीनता से ग्रसित रहते हैं। माता-पिता दोनों के काम पर जाने से बच्चों को केच में अपना बचपन बिताने को विवश होना पड़ रहा है। प्यार तथा अपनेपन की कमी में यही बच्चे वृद्ध माता की उपेक्षा करते हैं जिससे उन्हें वृद्धाश्रम की शरण लेनी पड़ती है।
सादा जीवन उच्च विचार
संकेत बिंदु –
सा।
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