The Well Being of Human Being is Of Outmost Importance
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भारतीय संस्कृति का मूल आधार ही दूसरों की भलाई है। इंसान को मुश्किल से मानव जीवन मिला है और मानव को बुद्धि इसलिए मिली है कि वह दूसरों की भलाई के बारे में विचार कर सके। किसी का बुरा करने का विचार भी मन में न लाएं। दीवार पर बॉल फेंकने पर वापस अपनी ओर आती है, उसी प्रकार भलाई करने पर मनुष्य के हृदय में उदारता की भावना पनपती है। महर्षि दधीचि ने राक्षसों के नाश के लिए और देवताओं की भलाई के लिए अपने शरीर की हड्डियां तक दान कर दीं। प्रकृति ने मनुष्य की भलाई के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया। महापुरुषों ने देश और समाज की भलाई के लिए अपना घर-परिवार का त्याग कर दिया। इसलिए यह कहा जा सकता है कि दया, प्रेम, अनुराग, करुणा व सहानुभूति की जड़ भलाई की भावना में ही है। इसलिए भलाई का कार्य करते जाओ, इसका फल भी अवश्य मिलेगा। भलाई ही सबसे बड़ा धर्म है और इसका फल भी हमारे लिए मधुर ही साबित होता है। सबसे बड़ी बात यह है कि भलाई के ताकत से हमें आत्मसंतोष का सुख प्राप्त होता है। आज के भौतिक युग में लोग एक-दूसरे की मदद करना भूल गए हैं, इसलिए बच्चों के भीतर इस भावना को जगाना शिक्षकों का कर्तव्य है। ऐसी सोच उत्पन्न होनी चाहिए कि केवल अपनी उन्नति से संतुष्ट न होकर दूसरों की उन्नति से भी खुश होना चाहिए। आज के परिवेश में ईष्र्या, द्वेष और घमंड जैसी भावनाएं प्रबल हो रही हैं। इसलिए स्कूल में ही बच्चों में इस भावना को समाहित करना चाहिए। जीवन में केवल अपनी खुशी के लिए कार्य नहीं करना चाहिए, जिससे वे भविष्य में भलाई के कामों में रुचि दिखाएं। इसके साथ ही माता-पिता भी उन्हें ऐसी शिक्षा जरूर दें कि वे बड़े होकर दूसरों की भलाई करने में स्वार्थ सिद्धि न तलाशें, क्योंकि आज के युग में अक्सर बच्चे माता-पिता की भलाई करना भी भूल जाते हैं। समाज के इन अवगुणों को दूर करने के लिए अच्छे गुणों का विकास जरूरी है
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