धूल
"
हिंदी-कविता की सबसे सुंदर पक्तियों में से एक यह है :
'जिसके कारण धूलि भरे हीरे कहलाए।'
हीरे के प्रेमी तो शायद उसे साफ़-सुथरा, खरादा हुआ, आँखों में चकाचौंध पैदा
करता हुआ देखना पसंद करेंगे। परंतु हीरे से भी कीमती जिस नयन-तारे का जिक्र
इस पंक्ति में किया गया है वह धूलि भरा ही अच्छा लगता है। जिसका बचपन गाँव
के गलियारे की धूल में बीता हो, वह इस धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना
कर ही नहीं सकता। फूल के ऊपर जो रेणु उसका शृंगार बनती है, वही धूल शिशु
के मुँह पर उसकी सहज पार्थिवता को निखार देती है।
अभिजात वर्ग ने प्रसाधन-सामग्री में बड़े-बड़े आविष्कार
किए, लेकिन बालकृष्ण के मुँह पर छाई हुई वास्तविक
गोधूलि की तुलना में वह सभी सामग्री क्या धूल नहीं
हो गई?
पातका
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फूल के ऊपर जो रेणू उसका श्रिंगार बनती है, वही धूल शिशु
के मुह पर उसकी सहज पार्थिव्ता को निखार देती है
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