*१ धूप बरसा रही थीं तलवारें,
फिर भी मैं सायबान से निकला।
वक़्त मोहलत न देगा फिर तुम को,
तीर जिस दम कमान से निकला।
१ ग़ज़ल व शायर का नाम लिखिए।
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शायर, अब्दुल मतीन नियाज
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