धूप से कुम्हलाए पौधों पर जैसे ही दो बूंद वर्षा की गिरी संतप्त मन की समस्त वेदनाएँ यूँ ही मुखरित हो उठीं। व्यथित हो गया था मन जब शुष्क धरा को देखा था सूखे पैरों की एड़ी पर पड़ी बिवाई-सी दिखाई पड़ती थी। दर्द का एहसास आँखों में समेटे मुसकराती हुई बहू-सी दिखती थी । भावार्थ लिखे।
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धूप से कुम्हलाए पौधों पर जैसे ही दो बूंद वर्षा की गिरी संतप्त मन की समस्त वेदनाएँ यूँ ही मुखरित हो उठीं।
जब धूप मे जलने वाले पौधों के पत्तो पर वर्षा माने बारिश की बूंदे गिर गायी तब जलते हुए उन के पत्तो को वेदनाओं से मुक्ती मिली
व्यथित हो गया था मन जब शुष्क धरा को देखा था सूखे पैरों की एड़ी पर पड़ी बिवाई-सी दिखाई पड़ती थी ।दर्द का एहसास आँखों में समेटे मुसकराती हुई बहू-सी दिखती
इन थंडी बुंदों के लिये जाने कितने साल तरस रहे पोधो के पत्ते अब खिल उठते
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