Hindi, asked by sonirajesh18031, 2 months ago

धार्मिक चेतना और मूल्यों का मानव जीवन में महत्व बताइए​

Answers

Answered by shreyalokkesharwani
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Answer:

हम एक ऐसी सत्ता में विश्वास करते हैं, जो सर्वशक्तिमान है| धर्म का संवेगात्मक पहलू हममें प्रेम, श्रद्धा, भक्ति, भय आदि अनेक अनुभूतियों का प्रादुर्भाव कराता है| क्रियात्मक पहलू धर्म के व्यावहारिकता की ओर हमें प्रेरित करता है। अतः हम कह सकते हैं कि धार्मिक चेतना हमारी संपूर्ण मस्तिष्क की चेतना है।

Explanation:

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Answered by mithu456
0

.उत्तर:

हम एक ऐसी सत्ता में विश्वास करते हैं, जो सर्वशक्तिमान है| धर्म का संवेगात्मक पहलू हममें प्रेम, श्रद्धा, भक्ति, भय आदि अनेक अनुभूतियों का प्रादुर्भाव कराता है| क्रियात्मक पहलू धर्म के व्यावहारिकता की ओर हमें प्रेरित करता है। अतः हम कह सकते हैं कि धार्मिक चेतना हमारी संपूर्ण मस्तिष्क की चेतना है।

चेतना मानव की प्रमुख विषेशता है जिसे वस्तुओं, विशयों, व्यवहारो का ज्ञान भी कहा जा सकता है। मनोवैज्ञानिक अर्थ मे - ‘चेतना सभी प्रकार के अनुभवों का संग्रहालय है।’

व्याख्या:

इस प्रकार से कह सकते हैं कि चेतना व्यक्ति की वह केन्द्रीय शक्ति है जो अनुभूित, विचार, चिन्तन, संकल्प, कल्पना आदि क्रियाएँ करती है।चेतना और मनुष्य का मौलिक संबंध है। चेतना वह विशेष गुण है जो मनुष्य को सजीव बनाती है आरै चरित्र उसका वह संपूर्ण संगठन है। किसी मनुष्य की चेतना और चरित्र केवल उसी की व्यक्तिगत संपति नहीं होते। ये बहुत दिनों के सामाजिक प्रक्रम के परिणाम होते हैं। प्रत्येक मनुष्य स्वयं के वंषानुक्रम प्रस्तुत करता है। वह विशेष प्रकार के संस्कार पैतृक सम्पत्ति के रूप में पाता है। वह इतिहास को भी स्वयं में निरूपित करता है क्योंकि उसने विभिन्न प्रकार की शिक्षा तथा प्रशिक्षण को जीवन में पाया है।

 महत्व:

चेतना का हमारी जीवन-शैली में बहुत महत्व है। मनोविज्ञान की दृष्टि में चेतना मानव में उपस्थित वह तत्त्व है जिसके कारण उस ेसभी प्रकार की अनुभूतियाँ होती हैं। चेतना के कारण ही हम देखते, सुनते, समझते और अनेक विशयों पर चिंतन करते हैं। इसी के कारण हमें सुख-दु:ख की अनुभूति हातेी है। मानव चेतना की तीन विशेषताएँ हैं। वह ज्ञानात्मक, भावात्मक और क्रियात्मक हातेी है। चेतना ही सभी पदार्थों की जड़-चतेन, शरीर-मन, निर्जीव-सजीव, मस्तिष्क-स्नायु आदि को बनाती है। उनका रूप निरूपित करती है। धर्म का संवेगात्मक पहलू हममें प्रेम, श्रद्धा, भक्ति, भय आदि अनेक अनुभूतियों का प्रादुर्भाव कराता है| क्रियात्मक पहलू धर्म के व्यावहारिकता की ओर हमें प्रेरित करता है। अतः हम कह सकते हैं कि धार्मिक चेतना हमारी संपूर्ण मस्तिष्क की चेतना है।

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