Hindi, asked by sukhsheal23, 8 hours ago

धार्मिक कट्टरता अनुच्छेद​

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Answered by ⲊⲧɑⲅⲊⲏɑᴅⲟᏇ
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‎ㅤ‎ㅤ‎★ धार्मिक कट्टरता ★

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प्रमुख बिंदु :-

  • यह अध्ययन पूर्णतः धर्मनिरपेक्ष होगा और इसमें किसी भी प्रकार के निष्कर्ष तक पहुँचने के लिये तथ्यों और रिपोर्ट को आधार के रूप में प्रयोग किया जाएगा।

आवश्यकता :-

भारत में अभी भी ‘कट्टरता’ को कानूनी रूप से परिभाषित किया जाना शेष है, जिसके कारण प्रायः पुलिस और प्रशासन द्वारा इस स्थिति का दुरुपयोग किया जाता है।

इसलिये भारतीय कानूनों में ‘कट्टरता’ को परिभाषित किया जाना और उस परिभाषा के आधार पर गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) जैसे कानूनों में संशोधन किया जाना आवश्यक है।

‘कट्टरता’ के किसी भी रूप से प्रभावित लोगों खासतौर पर युवाओं को कठिन-से-कठिन सज़ा देकर ही इस समस्या को हल नहीं किया जा सकता है, इस समस्या को हल करने के लिये समाज में सकारात्मक माहौल तैयार करने तथा लोगों को लामबंद करने की आवश्यकता है। इस कार्य के लिये सर्वप्रथम ‘कट्टरता’ को परिभाषित करना होगा।

क्या होती है ‘कट्टरता’?:-

दुनिया भर के चिंतकों के लिये कट्टरता सदैव एक महत्त्वपूर्ण विषय रहा है, और इस पर काफी विमर्श किया गया है, हालाँकि वैश्विक स्तर पर ‘कट्टरता’ की कोई सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत परिभाषा मौजूद नहीं है, जिसके कारण प्रत्येक व्यक्ति द्वारा इसे अलग-अलग संदर्भों में अलग-अलग ढंग से परिभाषित किया जाता है।

संक्षेप में हम कट्टरता को ‘समाज में अतिवादी ढंग से कट्टरपंथी परिवर्तन लाने के विचार को आगे बढ़ाने और/अथवा उसका समर्थन करने के रूप में परिभाषित कर सकते हैं, जिसके लिये आवश्यकता पड़ने पर अलोकतांत्रिक माध्यमों का प्रयोग किया जाता है और जो किसी देश की लोकतांत्रिक कानून व्यवस्था के लिये खतरा पैदा कर सकता है।

भारतीय संदर्भ में ‘कट्टरता’ के प्रकार :-

राइट विंग अतिवाद: यह ‘कट्टरता’ का वह रूप है, जिसे प्रायः हिंसक माध्यमों से नस्लीय, जातीय या छद्म राष्ट्रीय पहचान की रक्षा करने की विशेषता के रूप में परिभाषित किया जाता है और यह राज्य के अल्पसंख्यकों, प्रवासियों और वामपंथी राजनीतिक समूहों के प्रति कट्टर शत्रुता से भी जुड़ा है।

राजनीतिक-धार्मिक अतिवाद: ‘कट्टरता’ का यह स्वरूप धर्म की राजनीतिक व्याख्या और हिंसक माध्यमों से धार्मिक पहचान से जुड़ा हुआ है, क्योंकि इससे प्रभावित लोग यह मानते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष, विदेश नीति और सामाजिक बहस आदि के कारण उनकी धार्मिक पहचान खतरे में है।

लेफ्ट विंग अतिवाद: ‘कट्टरता’ का यह स्वरूप मुख्य रूप से पूंजीवादी विरोधी मांगों पर ध्यान केंद्रित करता है और सामाजिक विषमताओं के लिये उत्तरदायी राजनीतिक प्रणाली में परिवर्तन की बात करता है, और यह अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिये हिंसक साधनों का भी समर्थन करता है। इसमें अराजकतावादी, माओवादी और मार्क्सवादी-लेनिनवादी समूह शामिल हैं जो अपने उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिये हिंसा का उपयोग करते हैं।

भारत में कट्टरता:-

संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी एक हालिया रिपोर्ट में केरल और कर्नाटक में इस्लामिक स्टेट (IS) और अलकायदा जैसे आतंकी संगठनों के सदस्यों की उपस्थिति को लेकर चिंता ज़ाहिर की गई थी।

रिपोर्ट में कहा गया था कि इस्लामिक स्टेट (IS) के भारतीय सहयोगी (हिंद विलायाह) में 180 से 200 के बीच सदस्य हैं। हालाँकि सितंबर माह में गृह राज्य मंत्री जी. किशन रेड्डी ने संसद को सूचित किया था कि संयुक्त राष्ट्र जारी आँकड़े तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है।

जी. किशन रेड्डी ने लोकसभा को सूचित किया था कि राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) ने तेलंगाना, केरल, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में इस्लामिक स्टेट (IS) की उपस्थिति से संबंधित 17 मामले दर्ज किये गए हैं और इन मामलों से संबंधित 122 आरोपी व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया है।

साथ ही सरकार के निरंतर हस्तक्षेप के बावजूद भारत के कई राज्यों में लेफ्ट विंग अतिवाद की समस्या को अब तक समाप्त नहीं किया जा सका है। वामपंथी अतिवाद से प्रभावित ज़िलों में लगातार पुलिस प्रशासन द्वारा गिरफ्तारियाँ की जा रही है, इसके बावजूद भारत में नक्सलवाद की समस्या प्रशासन के लिये बड़ी चुनौती बनी हुई है।

वहीं दूसरी ओर लगातार बढ़ती मॉब लिंचिंग की घटनाएँ, लोगों के मन में धर्म विशेष के प्रति पैदा होती घृणा और नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे और गौरी लंकेश जैसे मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं की हत्या के मामले राइट विंग अतिवाद की ओर इशारा करते हैं।

कट्टरता से निपटने के उपाय :-

  • भारत में ‘कट्टरता’ के अलग-अलग स्वरूपों की मौजूदगी सदैव ही एक ऐसा विषय रहा है, जिस पर नीति निर्माताओं ने अधिक ध्यान नहीं दिया और न ही इस विषय पर सही ढंग से कोई अध्ययन किया गया है।
  • कट्टरता और उससे निपटने को लेकर किसी भी प्रकार की आधिकारिक नीति की अनुपस्थिति में यह समस्या और भी गंभीर हो गई है।
  • यद्यपि भारत के कई राज्यों द्वारा अलग-अलग पहलों के माध्यम से कट्टरपंथ की समस्या से निपटने का प्रयास किया गया है, किंतु ये पहलें सफल होती नहीं दिख रही हैं।
  • ऐसे में इन चुनौतियों से निपटने के लिये भारत को एक व्यापक नीति की आवश्यकता है, जिससे न केवल उन लोगों को बचाया जा सके जो कट्टरता के किसी रूप से प्रभावित हैं, बल्कि अन्य लोगों को भी इस रास्ते पर जाने से रोका जा सके।
  • इस नीति के तहत व्यक्ति, परिवार, धर्म और मनोविज्ञान जैसे पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये और इसके माध्यम से कट्टरता से प्रभावित किसी व्यक्ति के विश्वास में स्थायी परिवर्तन लाने का प्रयास होना चाहिये।

आगे की राह:-

गृह मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया अध्ययन, भारत में कट्टरता को समाप्त करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है, जिसके माध्यम से भविष्य में ‘कट्टरता’ को रोकने के लिये बनाने वाली सभी नीतियों को एक तथ्यात्मक आधार मिल सकेगा और साथ ही भारत में कट्टरता को कानूनी रूप से परिभाषित भी किया जा सकेगा।

Answered by xxitssagerxx
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• राइट विंग अतिवाद : -

  • यह ‘कट्टरता’ का वह रूप है, जिसे प्रायः हिंसक माध्यमों से नस्लीय, जातीय या छद्म राष्ट्रीय पहचान की रक्षा करने की विशेषता के रूप में परिभाषित किया जाता है और यह राज्य के अल्पसंख्यकों, प्रवासियों और वामपंथी राजनीतिक समूहों के प्रति कट्टर शत्रुता से भी जुड़ा है।

• राजनीतिक-धार्मिक अतिवाद : -

  • ‘कट्टरता’ का यह स्वरूप धर्म की राजनीतिक व्याख्या और हिंसक माध्यमों से धार्मिक पहचान से जुड़ा हुआ है, क्योंकि इससे प्रभावित लोग यह मानते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष, विदेश नीति और सामाजिक बहस आदि के कारण उनकी धार्मिक पहचान खतरे में है।

• लेफ्ट विंग अतिवाद : -

  • ‘कट्टरता’ का यह स्वरूप मुख्य रूप से पूंजीवादी विरोधी मांगों पर ध्यान केंद्रित करता है और सामाजिक विषमताओं के लिये उत्तरदायी राजनीतिक प्रणाली में परिवर्तन की बात करता है, और यह अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिये हिंसक साधनों का भी समर्थन करता है। इसमें अराजकतावादी, माओवादी और मार्क्सवादी-लेनिनवादी समूह शामिल हैं जो अपने उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिये हिंसा का उपयोग करते हैं।
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