ध्रुव को कहां से हटाया गया
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उन्होंने कहा कि मनु और शतरूपा के दो पुत्र प्रियवत और उत्तानपाद थे। उत्तानपाद की सुनीति और सुरुचि नामक दो पत्नियां थीं। राजा उत्तानपाद को सुनीति से ध्रुव और सुरुचि से उत्तम नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए। सुनीति बड़ी रानी थी परन्तु उत्तानपाद का प्रेम सुरुचि के प्रति अधिक था। एक बार सुनीति का पुत्र ध्रुव अपने पिता की गोद में बैठा खेल रहा था। इतने में सुरुचि वहां आ पहुंची। ध्रुव को उत्तानपाद की गोद में खेलता देख वह बर्दाश्त न कर सकी। उसका मन ईर्ष्या से जल उठा। उसने झपट कर बालक ध्रुव को राजा की गोद से खींच लिया और अपने पुत्र उत्तम को उसकी गोद में बैठा दिया। बालक ध्रुव से बोली, अरे मूर्ख राजा की गोद में वही बालक बैठ सकता है जो मेरी कोख से उत्पन्न हुआ हो। इसके बाद ध्रुव को कुछ ज्ञान उत्पन्न हुआ और वह भगवान की भक्ति करने के लिए पिता के घर को छोड़ कर चल पड़े। मार्ग में उनकी भेंट देवार्षि नारद से हुई। देवर्षि ने बालक ध्रुव को समझाया, किन्तु ध्रुव नहीं माना। नारद ने उसके दृढ़ संकल्प को देखते हुए ध्रुव को मंत्र की दीक्षा दी। इसके बाद ध्रुव ने कठिन तपस्या कर भगवान को प्रसन्न किया ।इसके पूर्व आयोजक श्री प्रकाश मिश्रा ने कथा वाचक का स्वागत किया । इस अवसर पर जय प्रकाश मिश्रा, जमुना मिश्र, अंकुर आदि मौजूद रहे।