धातु नाम उपयोग कृत्वा वाक्य निर्माण करुता दा (३आ.प)
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वाक्य के मुख्यतः दो भाग होते हैं।
1.कर्ता
2. क्रिया
संस्कृत भाषा के वाक्यों में *क्रिया (Verb)* के लिए *धातु* का प्रयोग की जाती है।
यथा-
रामः फलं *खादति।*
राम फल *खा रहा है।*
Ram is *Eating* an Apple.
उपर्युक्त वाक्य में *खादति* क्रिया है जो धातु के रूप में प्रयोग की जाती है।
धातुओं के दस लकार होते हैं-
" लट् , लिट् , लुट् , लृट् , लेट् , लोट् ,
लङ् , लिङ् , लुङ् , लृङ् " ।
•• वास्तव में ये दस प्रत्यय हैं जो धातुओं में जोड़े जाते हैं। इन दसों प्रत्ययों के प्रारम्भ में " ल " है
इसलिए इन्हें 'लकार' कहते हैं (ठीक वैसे ही जैसे ॐकार, अकार, इकार, उकार इत्यादि)।
•• इन दस लकारों में से
~~~~ आरम्भ के छः लकारों के अन्त में 'ट्' है-
लट् लिट् लुट् आदि इसलिए ये " टित् " लकार कहे जाते हैं और
~~~~ अन्त के चार लकार " ङित् " कहे जाते हैं क्योंकि उनके अन्त में 'ङ्' है।
•• व्याकरणशास्त्र में जब धातुओं से
पिबति, खादति आदि रूप सिद्ध (बनाए) किये जाते हैं
तब इन " टित् " और " ङित् " शब्दों का बहुत बार प्रयोग किया जाता है।
•• इन लकारों का प्रयोग विभिन्न कालों की क्रिया बताने के लिए किया जाता है।
जैसे –
••••• जब वर्तमान काल की क्रिया बतानी हो तो धातु से " लट् " लकार जोड़ देंगे,
•••••• परोक्ष भूतकाल की क्रिया बतानी हो तो " लिट् " लकार जोड़ेंगे।