ध्वनि की आत्मकथा पर अनुच्छेद
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जो कुछ सुनते हैं,वो ध्वनि है । ध्वनियाँ अनेक प्रकार की हैं। परन्तु क्या आपने कभी सोचा है ,की यदि ध्वनि को एक मौका मिले ख़ुद अपनी बात कहने का,तो वो क्या कहेगी ?आइये आज सुनते हैं ध्वनि की आत्मगाथा ,उसी की जुबां में - ध्वनि की आत्मकथा
घर्षण से उतपन्न हुई
न छिपती हूँ ,न दिखती हूँ ,
कर्ण में अस्तित्व मेरा
वहाँ तक जा पहुँचती हूँ,
कभी मैं हूँ मधुर चंचल ,
कभी कटु और कभी गंभीर हूँ
न कोई है दिशा मेरी,न कोई है डगर मेरा
हवा ही इक सखी मेरी,
उसी के संग बहती हूँ,
मैं ध्वनि हूँ,ख़ुद कथा अपनी मैं कहती हूँ ।
मैं बनती ताल तबलों की,
कभी स्वर शारदे की हूँ
मुझे संगीत कहते तुम,तुम्हारे मन में बस्ती हूँ,
सरल एकांत में भी मैं ,तुम्हारे साथ हूँ
उदास हो जो फिर,वजह मुस्कान की बनती
मैं ध्वनि हूँ,ख़ुद कथा अपनी मैं कहती हूँ ।
मैं गर्जन बादलों की हूँ,
व टिप -टिप बारिशों की भी
मैं चह -चह पक्षियों की हूँ ,
व कल - कल हूँ नदी की भी
मैं खन -खन चूड़ियों की हूँ
व घुंगरू संग झनकती हूँ
मैं ध्वनि हूँ,ख़ुद कथा अपनी मैं कहती हूँ ।
मैं हूँ हर युद्ध का आरम्भ,
संदेसा प्रेम का भी हूँ
उमंग उत्साह उत्सव की ,
अंदेसा विघ्न का भी हूँ
न जिसने रौशनी देखी ,मैं उसका भी सहारा हूँ
जो दिल तक और ख़ुदा तक है पहुँचती ,
मैं वो धारा हूँ
तू चाहे तो जगत में ,
मैं तेरी पहचान बनती हूँ
मैं ध्वनि हूँ,ख़ुद कथा अपनी मैं कहती हूँ ।
घर्षण से उतपन्न हुई
न छिपती हूँ ,न दिखती हूँ ,
कर्ण में अस्तित्व मेरा
वहाँ तक जा पहुँचती हूँ,
कभी मैं हूँ मधुर चंचल ,
कभी कटु और कभी गंभीर हूँ
न कोई है दिशा मेरी,न कोई है डगर मेरा
हवा ही इक सखी मेरी,
उसी के संग बहती हूँ,
मैं ध्वनि हूँ,ख़ुद कथा अपनी मैं कहती हूँ ।
मैं बनती ताल तबलों की,
कभी स्वर शारदे की हूँ
मुझे संगीत कहते तुम,तुम्हारे मन में बस्ती हूँ,
सरल एकांत में भी मैं ,तुम्हारे साथ हूँ
उदास हो जो फिर,वजह मुस्कान की बनती
मैं ध्वनि हूँ,ख़ुद कथा अपनी मैं कहती हूँ ।
मैं गर्जन बादलों की हूँ,
व टिप -टिप बारिशों की भी
मैं चह -चह पक्षियों की हूँ ,
व कल - कल हूँ नदी की भी
मैं खन -खन चूड़ियों की हूँ
व घुंगरू संग झनकती हूँ
मैं ध्वनि हूँ,ख़ुद कथा अपनी मैं कहती हूँ ।
मैं हूँ हर युद्ध का आरम्भ,
संदेसा प्रेम का भी हूँ
उमंग उत्साह उत्सव की ,
अंदेसा विघ्न का भी हूँ
न जिसने रौशनी देखी ,मैं उसका भी सहारा हूँ
जो दिल तक और ख़ुदा तक है पहुँचती ,
मैं वो धारा हूँ
तू चाहे तो जगत में ,
मैं तेरी पहचान बनती हूँ
मैं ध्वनि हूँ,ख़ुद कथा अपनी मैं कहती हूँ ।
shub5:
poem nhi yaar...
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